Thursday, September 10, 2009

पेड़ों से भी पैदा की जा सकती है बिजली

विनय बिहारी सिंह

यूनिवर्सिटी आफ मेसाचुसेट्स के विशेषग्यों ने पेड़ों से बिजली बनाने का अनोखा अविष्कार किया है। हमारे ऋषि- मुनि पेड़ को प्रकाश में बदल देते थे। पेड़ों से संवाद करते थे और मंत्रोच्चार से वातावरण को इस तरह स्पंदित कर देते थे कि वहां जाने वाला व्यक्ति बहुत राहत महसूस करता था और उस ऋषि के आश्रम में बार बार जाने के लिए बेचैन रहता था। हमारे ऋषि बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय काम करते थे और आज भी हिमालय की कंदराओं और अनेक गुप्त जगहों से हम सब के कल्याण के लिए स्पंदन भेजते रहते हैं। यूनिवर्सिटी आफ मेसाचुसेट्स के लोगों ने एक इलेक्ट्रोड पेड़ में औऱ दूसरा पास ही जमीन में स्थापित कर देखा कि पेड़ों में पर्याप्त ऊर्जा होती है और इससे बिजली पैदा करना बहुत मुश्किल काम नहीं है। उनके सहयोग में यूनिवर्सिटी आफ वाशिंगटन के वैग्यानिक भी हैं। उन्होंने पाया कि पेड़ जितनी ऊर्जा पैदा करते हैं, उससे इन पेड़ों का काम तो चल ही सकता है, हमें भी बिजली मिल सकती है। यह बिजली कभी कटेगी नहीं। लगातार इसकी आपूर्ति होती रहेगी। लेकिन कुछ वैग्यानिकों का कहना है कि अगर पेड़ों की प्राकृतिक ऊर्जा का इस तरह दोहन हुआ तो ये पेड़ सूखने लगेंगे और उनकी मूल प्रकृति में अंतर आ जाएगा। पेड़ों को उनकी प्राकृतिक अवस्था में ही रहने दिया जाए तो अच्छा है। लेकिन प्रयोग करने वाले वैग्यानिक ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है कि पेड़ों से जितनी ऊर्जा का दोहन किया जाएगा, पेड़ फिर से उतनी ऊर्जा प्राप्त कर लेंगे। अब आइए अपने ऋषि मुनियों के प्रयोगों पर आएं। ऋषि पेड़ों की ऊर्जा का दोहन नहीं करते थे। वे पेड़ों की ऊर्जा को और बढ़ा कर पेड़ों का भला करते थे। इससे पेड़ों पर फल- फूल खूब होता था। पेड़ फलों से लदे रहते थे। तब यह जरूरी नहीं था कि अन्न से ही पेट भरा जाए। लोग तरह तरह के स्वादिष्ट जंगली फलों को खाते थे और खूब स्वस्थ रहते थे। इन ऋषियों की शिक्षा का प्रभाव यह था कि लोग भी परोपकार को अपना धर्म मानते थे। आज परोपकार और बहुजन हिताय की बात सोचने वाले कम हो गए हैं। सब अपना सोचते हैं। हमारे ऋषि कितने दूरदर्शी थे यह उनके चिंतन से पता चलता है। वे जानते थे कि सब लोग सबका हित सोचेंगे तो समाज अपने आप खुशहाल हो जाएगा। अगर हर आदमी एक दूसरे को लूटने की सोचेगा तो यह समाज क्या नर्क नहीं हो जाएगा। एक मित्र तो कहते हैं कि नर्क होगा नहीं हो चुका है। कोई किसी पर भरोसा नहीं कर रहा है। लेकिन नहीं, हमारे समाज में भला सोचने वाले, परहित धर्म को मानने वाले लोग भी हैं। संख्या में कम ही सही। हैं जरूर। इनकी संख्या बढ़ेगी। बढ़नी भी चाहिए।

No comments: