विनय बिहारी सिंह
कल एक परिचित मिले। थोड़ी देर अध्यात्म चर्चा के बाद बोले- मैं तो हैरान हूं कि लोग साकार ईश्वर की पूजा क्यों करते हैं। मूर्ति पूजा से व्यक्ति भगवान को सीमित कर देता है, जबकि ईश्वर तो अनंत है। उन्होंने कहा- मुझे मूर्ति पूजा अच्छी नहीं लगती। लेकिन क्या करूं, मेरे घर में ही मूर्ति पूजा होती है। फिर उन्होंने मुझसे पूछा- आपकी क्या राय है? मैंने उनसे पूछा - आपने वेद व्यास की लिखी भगवत गीता पढ़ी है? उन्होंने कहा- हां। मैंने कहा- उसमें भगवान कृष्ण ने कहा है कि वे साकार पूजा करने वालों को भी प्यार करते हैं और निराकार पूजा करने वालों को भी। फिर साकार या मूर्ति पूजा के प्रति इतनी विरक्ति क्यों? इसी प्रश्न पर रामकृष्ण परमहंस हंस कहते थे- क्या भगवान नहीं जानते कि उन्हीं की पूजा हो रही है? उन्हीं का ध्यान हो रहा है, उन्हीं का जप हो रहा है? एक गोल पत्थर को भी भगवान के रूप में पूजा करेंगे तो भगवान को पता चल जाता है कि पत्थर रूप में कौन उनकी पूजा कर रहा है। वे सर्वव्यापी, सर्व ग्याता और सर्वग्य तो हैं ही, कृपा सागर भी हैं। उन्हें पता है कि कौन उनकी पूजा कर रहा है, क्यों कर रहा है। ईश्वर से क्या कुछ छुपा है? आप उन्हें साकार रूप में याद करें या निराकार रूप में वे बस आपका प्यार चाहते हैं। उन्होंने मेरा जवाब सुना। बहुत देर तक सोचते रहे। लेकिन कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। यह ठीक है कि ईश्वर सर्वव्यापी है, लेकिन वह किसी साकार रूप में आकर सीमित कैसे हो सकता है। तुलसी दास के रामायण में भगवान शिव, भगवान राम के बारे में बताते हैं-पग बिनु चलै, सुनै बिनु काना। कर बिनु कर्म करै बिधि नाना।।(उनके पैर नहीं हैं, लेकिन गतिमान हैं, कान नहीं हैं लेकिन सब सुनते हैं, हाथ नहीं हैं लेकिन असंख्य काम करते हैं।) भगवान राम की यह व्याख्या बताती है कि वे साकार भी हैं और निराकार भी। सीमित देह रूप में दिखने के बावजूद वे अनंत हैं। यह भगवान की विशेषता है।
3 comments:
उस में ही तो हम सब है, वह हम में कैसे समा सकता है।
सत्य वचन!!
आप जैसे सज्जन पुरुष और सहज व उत्तम विचार आज के दौर मैं दुर्लभ हैं !...आपका संयम बना रहे ... ईश्वर से यही कामना है !__टिल्लन रिछारिया
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