Monday, September 14, 2009

अखंड एकरस आनंद यानी भगवान



विनय बिहारी सिंह़


आज गीता के १४वें अध्याय के २७वें श्लोक को पढ़ते हुए बहुत अच्छा लगा। इसे आपके साथ बांटना चाहता हूं। श्लोक में भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं-
ब्रह्मणः हि प्रतिष्ठा अहम, अमृतस्य अव्ययस्य च।


शास्वतस्य च धर्मस्य, सुखस्य ऐकान्तिकस्य च।।
अर्थ है- हे अर्जुन, अविनाशी परब्रह्म का और अमृत का तथा नित्य धर्म का और अखंड एकरस आनंद का आश्रय मैं हूं। ईश्वर ही वास्तविक आनंद रस हैं। लेकिन हम लोग गलती से न जाने कहां कहां आनंद खोजते हैं। कभी भोजन में तो कभी घूमने में तो कभी गीत सुनने में तो कभी नींद में। लेकिन क्या गजब कि ये आनंद अधूरे जान पड़ते हैं। लगता है कि सब कर लिया लेकिन असली सुख और आनंद बाकी रह गया। कहां मिलेगा यह? इस श्लोक को आज बार- बार पढ़ा। ईश्वर ही रस है। कैसा रस? आनंद रस। स्वामी वल्लभाचार्य ने भगवान का दर्शन प्राप्त किया था। उनके शिष्यों ने कहा- आपने भगवान को कैसा देखा? इस पर वल्लभाचार्य ने जो गीत गाया वह जग प्रसिद्ध हो गया। आज भी इस भजन को सुन कर सुख मिलता है- मधुराधिपते रखिलं मधुरम। भजन लंबा है। लेकिन उसका अर्थ है कि भगवान का अधर मधुर है, वचन मधुर है, आंखें मधुर हैं और यही क्यों उनका अंग प्रत्यंक मधुर है। उनका चलना मधुर है उनकी चितवन मधुर है। तो फिर उनकी कृपा कैसे मधुर नहीं होगी? आइए रमण महर्षि को याद करें। रमण महर्षि ने कहा है कि मनुष्य के जीवन में भगवान ही गुरु के रूप में आते हैं। शास्त्रों ने भी कहा है कि गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं औऱ गुरु ही महेश हैं। गुरु ही साक्षात परब्रह्म हैं। यानी ईश्वर हैं। गुरु करते क्या हैं? वे ईश्वर से शिष्य को मिला देते हैं। तो क्या शिष्य सीधे- सीधे ईश्वर से नहीं मिल सकता? नहीं। क्यों? क्योंकि शिष्य जन्म जन्मांतर से न जाने कितनी मैल लेकर चल रहा है। उसके भीतर न जाने कितनी कामनाएं- वासनाएं भरी पड़ी हैं। वह जाएंगी तभी तो ईश्वर से साक्षात्कार होगा, ईश्वर की अनुभूति होगी। गुरु शिष्य की मैल साफ करते हैं। उसे इस योग्य बनाते हैं कि वह ईश्वर से मिलने योग्य हो सके। गुरु दरअसल शिष्य के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। एक उत्सुक व्यक्ति ने काफी पहले मुझसे पूछा था कि सद्घुगुरु कहां से पाएं। कौन सच्चा गुरु है, इसकी पहचान कैसे होगी? सभी तो टीवी पर प्रवचन देते नजर आते हैं। किसमें कितनी गहराई है पता कैसे चलेगा?हां, यह सच है कि आजकल पाखंडी लोगों का बाजार गर्म है। सद् गुरु कैसे मिले? सच्चे गुरु आज भी हैं। पर उन्हें ढूढ़ना असंभव नहीं है। सच्चे गुरु चुपचाप साधना में लीन रहते हैं और अपनी ख्याति के लिए बेचैन नहीं रहते। वे अपने चेलों की संख्या बढ़ाने के लिए उत्सुक नहीं रहते। वे बहुत ठोक बजा कर शिष्य चुनते हैं और उन्हें प्रशिक्षित कर ईश्वर की राह पर ले जाते हैं। लेकिन अगर कोई ऐसा गुरु आपको नहीं मिल सका है तो आप ईश्वर से प्रार्थना कीजिए और ईश्वर का ही नाम जप कीजिए। आपका काम हो जाएगा।

1 comment:

kulu said...

hello vinay Ji
aapka Lakh pasand aaya hai sachcha Guru kaisa praapat kiya jaya kyonki kai Guru aajkal Bhakto ko Bavkoof Bhi Bannate hai. abhi Kal News thi ki eak Guru Kala Jaadu bhi karta hai. To kaise Kisk Guru par viswaas kiya jaya kirpa Battane ka kast karai.