विनय बिहारी सिंह
हमारी आंखें सामने की ओर हैं। हमारा पैर सामने की ओर है। क्यों? ताकि हम हमेशा विकास करें। मानसिक, आत्मिक और भौतिक भी। आंखें सामने की ओर हैं। आगे बढ़िए, सामने देखिए। पैर सामने हैं। पीछे चलना है तो आपको घूमना पड़ेगा और फिर सामने की ओर चलना पड़ेगा। हम खराब बातें क्यों सोचें? हां, हो सकता है हमारे जीवन में कोई घटना घटी हो जिससे हम आहत हुए हों। या हो सकता है किसी बात को लेकर आप में से कोई चिंतित हों या तनावग्रस्त हो जाते हों। ऐसे में हमें याद करना चाहिए कि हम तो ईश्वर की संतान हैं। वह हमें लगातार देख रहा है। हमारी देखभाल कर रहा है। चिंता किस बात की? बांग्ला भाषा में कहा जाता है कि मां काली भक्तों से कहती हैं- भय की रे पागल? आमी तो आछी ( डर किस बात का रे पागल? मैं तो हूं ही)। जब भी किसी कठिन स्थिति से गुजरिए, हमेशा भगवान को पुकारिए। वही हमारी समस्या का समाधान करेगा। वही हमारा मालिक है। ईश्वर कहते हैं कि मेरे पास सब कुछ है। बस एक ही चीज मैं चाहता हूं, जीवों का प्यार। हम कहते हैं- तो भगवन, यह भी तो आपके ही हाथ में है। सबके दिल में अपने प्रति प्यार क्यों नहीं पैदा कर देते? आपके लिए तो यह मामूली सी बात है? तब भगवान कहते हैं- नहीं। ऐसे प्यार का आनंद नहीं है। मैंने मनुष्य को फ्री विल या स्वतंत्र इच्छा दी है। वह उसका इस्तेमाल क्यों नहीं करता? मैं क्यों जबर्दस्ती अपने प्रति प्यार करूं। प्यार का तत्व तो मनुष्य के भीतर मैंने दे ही दिया है। वरना वह अपनी पत्नी से, बच्चों से, मित्र से प्रेमी से प्रेमिका से कैसे प्यार करता? जब जीव खुद प्यार से मुझे बुलाए तब मजा है। इसी आनंद का मैं इंतजार करता हूं। कोई मुझे प्यार से बुलाए, दिल में मेरे प्रति चाहत लाए तो मैं दौड़े चला आऊंगा। मैं उस व्यक्ति को और चाहूंगा। और प्यार तो खरीदना नहीं है। कम से कम यह तो मनुष्य मुझे दे ही सकता है।
2 comments:
आपके सभी लेख बहुत अच्छे व ज्ञानवर्धक होते है....जनमानस को लाभ पहुचाने वाले इन आलेखों के लिए आपके आभारी है।
सदविचारों के लिए आभार.
Post a Comment