Friday, September 4, 2009

भगवान का रूप कैसा है

विनय बिहारी सिंह

भगवान का रूप किस तरह का है? यह प्रश्न कल के मेरे लेख से पैदा हुआ है। साकार भगवान के रूप पर आज चर्चा हो। गीता के ११वें अध्याय में अर्जुन ने कहा कि भगवन, आपने मेरा अग्यान दूर कर दिया। लेकिन आपके रूप को मैं अपनी आंखों से देखना चाहता हूं। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम अपने प्राकृत नेत्रों से मेरे रूप को नहीं देख सकते। इसलिए मैं तुम्हें दिव्य चक्षु दे रहा हूं। तुम एकादश रुद्रों, उनचास वायुओं और सभी देवताओं को मुझमें देखो। यानी सारी सृष्टि, सभी देवता मेरे ही अंश हैं। भगवान का यह रूप विश्व रूप भी कहा जाता है। इसे देख कर अर्जुन डर गए। उन्होंने कहा- जैसे नदियां वेग से बहते हुए समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह सभी योद्धा और जीव वेग से आपके मुंह में समा रहे हैं। आपको देख कर मैं ही नहीं, अन्य लोग भी भयभीत हो रहे हैं। कृपया आप अपने चिर परिचित स्वरूप यानी शंख, चक्र, गदा, पद्म (कमल) धारण किए हुए चतुर्भुज रूप में प्रकट होइए। इसके पहले वे स्तुति करते हैं-
नमो नमस्तेस्तु सहस्र कृत्वः।

पुनश्च भूयोपि नमो नमस्ते।

नमः पुरस्तादथ पृष्टतस्ते।

नमस्तुते सर्वत एव सर्व।।
भगवान कृष्ण अपने उसी पुराने रूप आ जाते हैं। गीता में दरअसल ये सारी बातें संजय, धृष्टराष्ट्र को सुना रहे हैं। संजय कहते हैं- जिस समय भगवान कृष्ण ने अर्जुन के सामने अपने दिव्य रूप को प्रकट किया, उस समय लगा कि हजारो सूर्य एक साथ आकाश में उदित हों, तो भी इतना प्रकाश नहीं होगा, जितना उस समय हुआ। लेकिन अर्जुन की आंखें चौंधियाईं नहीं। उन्हें दिव्य आंखें मिली हुई थीं। भगवान के दिव्य रूप को देख कर अर्जुन कहते हैं- भगवान मैं आपके रूप को तो देख रहा हूं, लेकिन न तो मैं आपके आदि को देखता हूं, न मध्य को और न ही अंत को। आपकी अनंत जंघाएं हैं, अनंत पेट हैं और अनंत रूप हैं। तो भगवान तो अर्जुन के सामने साकार रूप में हैं, लेकिन अर्जुन न आदि देख पा रहे हैं, न मध्य और न अंत। ऐसे ही हैं भगवान। वे साकार भी हैं औऱ निराकार भी। चतुर्भुज भी हैं और द्विभुज भी। अगर सौंदर्य का सारा तत्व एक जगह कहीं है तो वह हैं भगवान। उनसे सुंदर और कौन है?

1 comment:

Udan Tashtari said...

आभार आपका!