Tuesday, September 1, 2009

शांति नकारात्मक नहीं होनी चाहिए

विनय बिहारी सिंह

ईश्वर का आनंद पाने के लिए शांति बहुत जरूरी है। अगर आप शांत नहीं हैं तो न पूजा ठीक से होगी, न ही ध्यान ठीक से होगा। यही क्यों, कोई भी काम ठीक से नहीं होगा। संतों ने कहा है कि शांति दो प्रकार की होती है- १. सुखद शांति और नकारात्मक शांति। सुखद शांति तो वह है जिसमें आप सब कुछ ईश्वर को समर्पित करके आनंद से पूजा- पाठ या ध्यान करने बैठते हैं। आप सुख में इसलिए होते हैं क्योंकि आपका सारा भार ईश्वर ले चुके होते हैं। लेकिन नकारात्मक शांति क्या है? मान लीजिए आप किसी चीज के लिए बहुत कोशिश कर रहे हैं। अचानक पता चला कि वह चीज आपको नहीं मिलेगी। वह कोई और ले गया। यह चीज नौकरी हो सकती है, व्यवसाय का कोई मौका हो सकता है, कोई कांट्रेक्ट हो सकता है या कोई वस्तु हो सकती है। या किसी ने आपको धोखा दे दिया तब भी आप अचानक शांत हो जाते हैं। यह शांति नकारात्मक है। प्रतिक्रिया के रूप में आती है यह। लेकिन सुखद शांति आनंद की स्थिति है। दुख और तकलीफ तो गुजर जाने वाली स्थिति है। जैसे नदी में पानी बह गया, ठीक उसी तरह आपकी तकलीफ गुजर गई। परेशानी और तनाव खत्म हो जाते हैं एक समय के बाद। लेकिन जब तक रहते हैं मन पूछता है- ये कब खत्म होंगे? लेकिन सुख के दिन? आनंद के दिन? मानों तुरंत खत्म हो गए। ईश्वर से संबंध जोड़ना सुख के दिनों में रहने जैसा है। लेकिन ईश्वरीय आनंद, ईश्वरीय सुख जल्दी खत्म नहीं होता। परमहंस योगानंद जी का एक भजन है- आनंद, आनंद, नित्य नवीन आनंद। ईश्वर नित्य नवीन आनंद हैं। आप इनसे जुड़िए। वे आपकी राह देख रहे हैं। वे सर्वशक्तिमान हैं। लेकिन आपका प्यार चाहते हैं। हम उनसे जुड़ कर सुख और आनंद के सागर में गोते लगाने लगते हैं। नित्य नवीन आनंद। लेकिन जब तक हम सांसारिक बातों में उलझे रहेंगे, ईश्वर में मन नहीं लगेगा। दस मिनट के लिए ही सही संसार की तरफ से हट कर ईश्वर में डूब कर तो देखिए। आपको आनंद ही आनंद मिलेगा।

2 comments:

रंजना said...

एकदम सही कहा आपने...

अपूर्व said...

सही बात है..नकारात्मक शांति बेहद तनावपूर्ण होती है..जिसमे शारीरिक रूप से भले ही हम शांत दिखें मगर अंदर से जलते रहते हैं!..बहुत शुक्रिया