Tuesday, May 31, 2011

अदृश्य सत्ता (भाग दो)

विनय बिहारी सिंह



क्या सांसारिक गतिविधियों में भी अदृश्य तत्व का समावेश है? इसका जवाब है- हां। कैसे? हम सब वर्चुअल दुनिया में यह सब देख रहे हैं। एक ई मेल लिखा और इसे अमेरिका भेज दिया। वह ई मेल तुरंत वहां संबंधित व्यक्ति के पास पहुंच गया। एक मिनट बाद उसका जवाब भी आपके पास आ गया। हम एक दूसरे से व्यक्तिगत रूप से परिचित नहीं हैं। कभी मुलाकात नहीं हुई है लेकिन लिखित संवाद करते हैं। फेस बुक पर। ट्विटर पर, ई मेल के जरिए। फोन के जरिए। अच्छा संवाद होता है। भले ही हम एक दूसरे से न मिले हों। विचारधारा मिलती है। संवाद जारी रहता है। शायद हम जीवन में एक दूसरे से कभी मिल भी न पाएं लेकिन एक दूसरे के प्रति सद्भाव, प्रेम रहता है। यह वर्चुअल दुनिया की देन है। हम एक दूसरे से सहानुभूति रखते हैं। भले ही एक दूसरे से मिले नहीं हैं। अदृश्य और दृश्य का यह मेल है। इसे आप अदृश्य भी कह सकते हैं। और आगे बढ़ें तो आप किसी अनजानी जगह पर जाकर बहुत शांति महसूस करते हैं और किसी अनजानी जगह पर जाकर बहुत डिस्टर्ब्ड, तनावपूर्ण। ऐसा उस जगह के वाइब्रेशन के कारण है।
यह बाइब्रेशन या यह स्पंदन हम देख नहीं सकते। यह अदृश्य है। और फिर हमारा मन। मान लीजिए कि आप किसी के घर आप गए। उसे आपका घर आना बुरा लगा। लेकिन प्रकट रूप से उसने आपकी खातिरदारी की। कुछ देर के बाद आप वहां से चले आए। हो सकता है कि आप जिंदगी भर न जान पाएं कि आपका उसके घर जाना उसे बुरा लगा। यह मन की बात गुप्त है। अदृश्य है। फिर भी कई लोग हैं जो इसे पकड़ लेते हैं। ऐसे कुछ सन्यासी हैं जो मन के स्पंदन को पकड़ लेते हैं। लेकिन प्रकट नहीं करते। हो सकता है कि किसी के घर आप गए और उसने हृदय से आपका स्वागत किया। लेकिन आप किसी अन्य समस्या में उलझे होने के कारण उसके सद्भाव को ग्रहण नहीं कर रहे हैं। वह आदमी आपकी हंसी को ही सद्भाव मान कर खुश होगा। मन के भाव अत्यंत गोपनीय हैं और सबकी पकड़ में नहीं आते। वे भी अदृश्य ही हैं। लेकिन अदृश्य होने के बावजूद मन की सत्ता तो है ही। इससे कौन इंकार कर सकता।
अगर मन अदृश्य हो कर सत्तावान है तो इस संसार के सारे मनों का स्वामी (भगवान) अगर नहीं दिखता तो उसके अस्तित्व पर सवाल उठाना क्या नासमझी नहीं है? ईश्वर ही तो है। वरना यह सारी सृष्टि कौन चलाता? मैंने बचपन में अपनी स्कूली किताब में एक कविता पढ़ी थी। यह कविता ईश्वर के बारे में थी। कविता की एक पंक्ति मुझे आज भी याद है- जिसने सूरज- चांद बनाया। जिसने तारों को चमकाया।।......

1 comment:

vandana gupta said...

अति उत्तम विवेचना।