Monday, May 30, 2011

जो दिखाई नहीं देता

विनय बिहारी सिंह



कल ब्रह्मचारी धैर्यानंद ने बहुत गहरी बातें कही। उन्होंने कहा- हम सब दिखाई देने वाली चीजों में इतने रमे रहते हैं कि जो अदृश्य है उस पर ध्यान ही नहीं देते। जबकि हर मूर्त वस्तु, हर दिखाई देने वाली वस्तु अमूर्त से ही आती है। कैसे? पानी को ही लें। उसका केमिकल कंबिनेशन है- एच२ओ। यानी हाईड्रोजन के दो और आक्सीजन का एक मालीक्यूल। दोनों मिले और पानी बन गए। लेकिन पानी पीते हुए हम सोचते नहीं हैं कि यह दो गैसों का मिश्रण है। गैस लिक्विड में बदली और द्रव यानी पानी बनी। अब पानी को हम जिरो डिग्री तक ठंडा करें तो वह बर्फ बन जाएगा। यह पानी का ठोस रूप है। फिर जब बर्फ को गर्म करेंगे तो पानी और पानी को और गर्म करेंगे तो भाप यान गैस बन कर हवा में मिल जाएगा। फिर अपने पुराने रूप में। लेकिन हम लोग सिर्फ पानी तक ही देख पाते हैं। उसके बाद वाले रूप को नहीं। ठीक इसी तरह हम फूलों को खिलते हुए देख सकते हैं, लेकिन फूल खिलने के पीछे की शक्ति को नहीं देख पाते। यह शक्ति क्या है? यही भगवान हैं। लेकिन हम सिर्फ फूल और उसके सुगंध पर मुग्ध हो कर रह जाते हैं। जिसने इस फूल को बनाया, खिलने का मौका दिया और सुगंध भर दी, उसे भूल जाते हैं। इस सृष्टि के कण- कण में भगवान हैं। बस हमें महसूस नहीं होते। इसलिए नहीं महसूस होते कि हमारा दिमाग स्थिर नहीं है। संसार की चिंताओं और गतिविधियों में जरूरत से ज्यादा इनवाल्व है, दिमाग का पुर्जा- पुर्जा संसार में आसक्त है। तो भगवान कैसे याद आएंगे? जबकि भगवान ही हमारे सबकुछ हैं। उनकी कृपा से ही हमारे भीतर प्राणों का संचार हो रहा है। फिर भी हम उन्हें याद नहीं करते तो वे बुरा नहीं मानते। अपनी कृपा बनाए रखते हैं। लेकिन अगर हम उन्हें व्याकुल होकर खोजते हैं तो वे खुश होते हैं। कभी छुप जाते हैं। लगता है कि वे हैं ही नहीं। लेकिन जो यह जानते हैं कि लुकाछिपी उनकी पुरानी आदत है, वे उनको पुकारते रहते हैं। जीव तो उनके छुपने की जगह खोज नहीं सकता। इसलिए करुण हो कर पुकारता है। तब भगवान उस पुकार पर दौड़े आते हैं।

1 comment:

Udan Tashtari said...

आभार इस आलेख के लिए.