Monday, May 16, 2011

आदि शंकराचार्य का ब्रह्मसूत्र भाष्य


विनय बिहारी सिंह



आदि शंकराचार्य का ब्रह्मसूत्र भाष्य अद्वितीय है। शंकराचार्य वेदांत दर्शन के शिखर संत थे। वेदांत का कहना है - ब्रह्म सत्यम जगन मिथ्या जीवो ब्रह्मैव न अपरा।। यानी ब्रह्म ही एक मात्र सत्य है। संसार मिथ्या है। जीव ब्रह्म का ही अंश है। यानी ईश्वर अंश जीव अविनासी (तुलसीदास)। आदि शंकराचार्य ने कहा- जगत द्वैत है। डुअल नेचर वाला- सच- झूठ, दिन- रात, सर्दी- गर्मी, सुख- दुख, प्रेम- घृणा...... आदि आदि। लेकिन ईश्वर एक ही हैं और वही पूर्ण हैं। अगर किसी को संपूर्ण होना है तो वह पूर्ण में जाकर मिले, वह भी पूर्ण हो जाएगा। जैसे नदी समुद्र में मिलती है और उसका नाम भी समुद्र हो जाता है। दूध में जरा सा पानी मिलता है और उसका नाम भी दूध हो जाता है। तो यह मिलन कैसे हो? क्या यह मिलन इतना सहज है? इसी के बारे में संतों ने कहा है- इक आग का दरिया है और डूब कर जाना है। इसे कहते हैं साधना। यानी बहुत ही सावधान हो कर ईश्वर की ओर जाना। आदि शंकराचार्य ने कहा- ब्रह्म ही सत्य है। अनेक विद्वानों ने आदि शंकराचार्य को ईश्वर का अवतार कहा है। वे इस पृथ्वी पर चालीस साल भी नहीं रहे। बहुत कम उम्र में ही उन्होंने शरीर छोड़ दिया। लेकिन इसी बीच उन्होंने महत्वपूर्ण धर्म ग्रंथों पर अपने भाष्य लिखे। देश के चार कोनों पर चार पीठ स्थापित किए। सन्यास की दशनामी परंपरा का सूत्रपात किया और गहन साधना कर अपने शिष्यों को ईश्वर प्राप्ति की राह दिखाई। शंकराचार्य का लिखा भजन- भज गोविंदम, भज गोविंदम, भज गोविंदम मूढ़मते......... आज भी अत्यंत लोकप्रिय है। हमें जो कुछ भी सुखद प्राप्त होता है, वह ईश्वर के यहां से ही आता है। तो भौतिक वस्तुओं के बदले क्यों न सारी वस्तुएं देने वाले ईश्वर को ही चाहें। उसके मिल जाने से ही हमें संपूर्ण सुख मिल जाएगा। फिर सारी कीमती वस्तुएं व्यर्थ हो जाएंगी। क्योंकि ईश्वर सच्चिदानंद हैं।


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