विनय बिहारी सिंह
कल आफिस के लिफ्ट में गया तो देखा वहां बाल कृष्ण का चित्र चिपकाया गया था। पोस्टकार्ड साइज का। सिर पर मोर पंख। घुटने के बल भगवान कृष्ण। उस मुग्धकारी चित्र को देख कर याद आया अभी दो दिन के ही हुए होंगे भगवान कृष्ण तो पूतना नाम की राक्षसी उनका वध करने आई। अपनी छाती पर विष का लेप किया और भगवान को दूध पिलाने के लिए मोहिनी रूप धर लिया। मां यशोदा ने उस मोहिनी को अपना बच्चा दे दिया- चलो उसके साथ खेल लो दो मिनट के लिए। लेकिन वह मोहिनी तो बाल भगवान को दूध पिलाने लगी। और मुश्किल से दो दिन के बाल भगवान पूतना की छाती से दूध पीने लगे। खूब किलकारियां मार कर। लेकिन यह क्या? पूतना को लगा कि मानो उसका रक्त ही पी रहे हैं भगवान। उसके शरीर की शक्ति जाती रही। इतना तेज विष इस बच्चे का कुछ बिगाड़ नहीं सका? और पूतना का प्राणांत हो गया। मां यशोदा घबरा कर अपने कृष्ण के पास गईं। देखा वे पहले की तरह ही किलकारियां मार कर हाथ- पैर चलाते हुए खेल रहे हैं। फिर बकासुर का वध किया, कालिया नाग का मान मर्दन किया। उसके फन पर नृत्य किया। और उसे कालिया दह से भागने पर मजबूर कर दिया। और न जाने कितनी घटनाएं याद आ गईं उस मनोहारी चित्र को देख कर। कितनी कितनी लीलाएं। और पूतना का वध किया तो पूतना भी भाग्यशाली बन गई। पूतना का मोक्ष हो गया। वह भगवान के धाम में चली गई। भगवान कृपासिंधु कहे जाते हैं। वे शत्रु को भी तार देते हैं। इसीलिए तो उनका रूप मुग्धकारी है। लेकिन भक्तों की बात ही कुछ और है। भक्त तो भगवान के हृदय में रहते हैं। वे भक्तों के पीछे- पीछे घूमते हैं। प्रेम का आकर्षण होता ही ऐसा है। कहा भी गया है- अगर भगवान को पाना है तो उन्हें प्रेमपाश में बांधना पड़ेगा। तब वे जाएंगे कहां?
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