Monday, May 23, 2011

भगवान शिव, अर्द्ध नारीश्वर के रूप में


विनय बिहारी सिंह



सभी जानते हैं कि भगवान शिव अर्द्ध नारीश्वर के रूप में भी जाने जाते हैं। यानी माता पार्वती या जगन्माता भी उन्हीं का एक रूप हैं। अर्द्ध नारीश्वर का अर्थ है कि भगवान पिता भी हैं और माता भी। आप उन्हें जिस रूप में याद करेंगे, वे उसी रूप में दर्शन देंगे। अधिकांश उच्च कोटि के संतों ने कहा है कि भगवान को मातृ रूप में पुकारने पर जल्दी आते हैं। उनका ध्यान अगर जल्दी खींचना हो तो उन्हें मां के रूप में पुकारना चाहिए क्योंकि मां अपने बच्चे की पुकार सुन कर चुप नहीं रह सकती। पिता में तर्क बुद्धि आ सकती है। पिता में माता की तरह की गहरी भावना नहीं होती। मोह जरूर होता है। लेकिन माता तो माता ही है। इसलिए भगवान को माता के रूप में पुकारना ज्यादा कारगर है। परमहंस योगानंद जी ने भी यह बात स्पष्ट रूप से कहा है। रामकृष्ण परमहंस तो भगवान को काली माता के रूप में मानते थे। उनके लिए भगवान रूपी मां ही सबकुछ थीं। बंगाल में एक उच्च कोटि के संत थे रामप्रसाद उनके भजन रामप्रसादी गान के रूप में आज भी खूब बिकते हैं। इसी तरह बंगाल के एक और उच्च कोटि के संत हुए हैं-वामाखेपा। वे भी भगवान को मां के रूप में ही मानते थे। अर्द्ध नारीश्वर का अर्थ है- भगवान कहते हैं- मुझे पिता या माता जिस रूप में मानो मैं हूं तुम्हारा ही।

1 comment:

PN Subramanian said...

सुन्दर प्रस्तुति.