Thursday, May 26, 2011

रमण महर्षि और रामकृष्ण परमहंस की बातें

विनय बिहारी सिंह






कई बार रमण महर्षि और रामकृष्ण परमहंस को पढ़ते हुए लगता है कि दोनों संतों ने लगभग एक ही बातें कही हैं। दोनों ही उच्चकोटि के संत प्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे से मिले नहीं। उनका भौतिक शरीर भी अलग अलग समयों में इस पृथ्वी पर आया और रहा। रामकृष्ण परमहंस का भौतिक शरीर १८ फरवरी १८३६ में इस पृथ्वी पर अवतरित हुआ और १६ अगस्त १८८६ को उन्होंने महासमाधि लेली। अपना भौतिक शरीर छोड़ दिया। रमण महर्षि ३० दिसंबर १८७९ को इस पृथ्वी पर अवतरित हुए और १४ अप्रैल १९५० में महासमाधि ले ली। यानी अपना भौतिक शरीर छोड़ दिया। रमण महर्षि दक्षिण भारत में रहे तो रामकृष्ण परमहंस बंगाल में। दोनों महर्षियों का एक दूसरे से प्रत्यक्ष मिलना भले न हुआ हो, लेकिन ईश्वर में दोनों ही एक थे। दोनों ही ईश्वर की वाणी बोलते थे। इसलिए दोनों की बातें एक जैसी लगेंगी ही। वेद और पुराणों की बातें जो भी बोलेगा, एक ही होंगी। ईश्वरीय बातें एक ही होंगी। लेकिन इन संतों की बातें सहज सरल भाषा में हैं। दोनों महान आत्माओं ने अपने - अपने ढंग से लोगों में ईश्वरीय प्रेम पैदा किया।
दोनों ने कहा- खुद से पूछो कि मैं कौन हूं। क्या मैं यह शरीर हूं, क्या मैं यह मन हूं या बुद्धि या अहंकार हूं? इस तरह नेति नेति करते करते ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है। एक बहुत रोचक प्रसंग है। एक आदमी ने मजाक में कहा- नींद में हमारा शरीर और दिमाग शांत हो जाता है, इसीलिए हम सुबह उठ कर तरोताजा महसूस करते हैं। कहावत है- सोना और मरना एक जैसा होता है। क्योंकि हमें नींद में यह नहीं पता होता कि हम कहां सोए हैं, यह संसार है भी कि नहीं। बस गहरी नींद में सोए हैं। लेकिन नींद में हमारी सांस चलती रहती है। भगवान ने यह नियम इसलिए बनाया है कि कहीं लोग सोए हुए आदमी को मृत न समझ लें। लेकिन यह मजाक अगर समझें तो यह भगवान के बारे में सोचने को प्रेरित करता है। सचमुच भगवान ने कितनी रहस्यमय यह प्रकृति बनाई है। हम तो इसके एक अंश को भी नहीं समझ पाते और जीवन का अंत हो जाता है। रमण महर्षि और रामकृष्ण परमहंस ने कहा है- अगर हम भगवान की शरण में रहें तो वे हमें खुद समझा देंगे कि उनकी सृष्टि का रहस्य क्या है।

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