विनय बिहारी सिंह
सन्यासियों ने कहा है- सबै भूमि गोपाल की। यानी यह पूरा ब्रह्मांड ही कृष्ण का है। भगवान का है। हमारे अंतःकरण में भी वही गोपाल हैं और हमारे बाहर भी वही हैं। कबीरदास ने तो कहा ही है- जल में कुंभ, कुंभ में जल है, बाहर- भीतर पानी। कुंभ फुटा, सब जल समाना, बात करें ये ग्यानी।। क्या अद्भुत प्रसंग है। हमारे अंदर भी ईश्वर और बाहर भी। लेकिन हमारी अग्यानता के कारण भीतर का तत्व भीतर ही रह जाता है और विराट ब्रह्म से मिल नहीं पाता। अंतर में ही सब है। बस हमें इसके लिए कोशिश करते रहना है। भगवान के लिए ही प्रेम, उन्हीं के लिए तड़प। वे आखिर कब तक छुपेंगे? परमहंस योगानंद जी ने भजन लिखा है- मां मैंने तुझे दी है आत्मा....। जगन्माता को संबोधित करते हुए क्या अद्भुत भजन है। सबसे अधिक भगवान के पास हमारा प्रेम तब पहुंचता है जब हम उन्हें मां के रूप में पुकारते हैं। तब वे बंध जाते हैं। जब भक्त उन्हें मां के रूप में तीव्रता के साथ, गहराई के साथ हमेशा पुकारता रहेगा तो क्या वे चुप रह सकेंगे? उन्होंने कहा भी है कि मुझे जो भक्त जिस रूप में पुकारता है, मैं उसी रूप में उसके पास आता हूं। सर्वाधिक निकट का संबंध है माता का। बस, भगवान को माता मान लें और उनको लगातार पुकारें। चाहे मन ही मन क्यों न पुकारें। मौन पुकार तो और जल्दी और प्रभावकारी ढंग से भगवान के पास पहुंचती है।
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