विनय बिहारी सिंह
मुझे चाय ने बुरी तरह पकड़ रखा था। सुबह ब्रश करने के बाद अगर चाय नहीं मिलती थी तो परेशानी महसूस होती थी। चाय चाहिए ही चाहिए थी। इस साल के शुरू में मैंने सोचा कि इस बुरी आदत से छुटकारा पाना है। भारी व्यस्तता और भागदौड़ के कारण तीन महीने बीत गए। जब मार्च का महीना आया तो मुझे लगा कि अरे, यह क्या। देखते- देखते तीन महीने बीत गए। चाय ने तो मुझे अब तक गुलाम बनाया हुआ है। इसी बीच मुझे कब्ज की बीमारी ने दबोच लिया। मैं हैरान हुआ। मैं तो सुबह तीन रोटी और रात को दो रोटी ही खाता हूं। बीच में फल इत्यादि। तली- भुनी चीजों से दूर रहता हूं। खूब पानी पीता हूं। फिर यह कब्ज क्यों? कोलकाता के पानी में जितना आइरन होना चाहिए उससे १० गुना है। यानी आइरन की बहुलता। इससे भी पेट गड़बड़ होता है। पानी में आइरन की मात्रा ०.३ मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए। मेरे इलाके में इसकी मात्रा है- ५. ८० मिलीग्राम प्रति लीटर। घर में लगा एक्वागार्ड शायद इस आइरन को फिल्टर नहीं कर पाता। मुझे मालूम है कि कब्ज की एक वजह यह भी है। लेकिन उपाय क्या है? डॉक्टरों ने दवाएं दी। सब बेअसर। क्योंकि दवा जब तक खाता ठीक रहता। फिर कब्ज मुझे दबोच लेता। इसबगोल आदि की भूसी का इस्तेमाल किया। फिर लगा कि इसबगोल तो अंतिम इलाज है नहीं। अंत में मैंने पूज्य सन्यासियों से सलाह ली। यह काम मुझे पहले करना चाहिए था। स्वामी शांतानंद जी और स्वामी शुद्धानंद जी से अपनी परेशानी बताई। उन्होंने पानी पीने की मात्रा दुगुनी करने की सलाह दी और खानपान में फाइबर की मात्रा और बढ़ाने को कहा। स्वामी शुद्धानंद जी ने कहा- टी इज द मेन कल्प्रिट। चाय ही असली अपराधी है। आप नाश्ता करने के बाद एक कप चाय ले लीजिए। दिन में सिर्फ दो कप ही चाय लीजिए। एक कप सुबह और एक कप शाम को। तब मुझे लगा कि हां, मैं तो दिन भर चाय पीता रहता हूं। और चाय ने मेरे ऊपर कब्जा कर लिया है। हर वक्त चाय की तलब लगी रहती है। स्वामी जी ने कहा कि पहले आप इसे घटा कर दो कप कीजिए। स्वामी जी से बात करने के अगले ही दिन मैंने उठते चाय पीने की आदत छोड़ दी। शरीर ने विद्रोह किया। शरीर झन- झन करता था। मन कहता था- हाय चाय। हाय चाय। लेकिन मैं दृढ़ रहा। आखिर स्वामी जी को वादा कर आया था। उन्होंने कहा- आदमी को लगता है कि चाय के कारण ही पेट साफ होता है। लेकिन यह भ्रम है। यह बुरी आदत है। मैं पूज्यवर सन्यासी जी का आभारी हूं। मैं इस आदत से मुक्त हो गया हूं।कब्ज की बीमारी से मुक्ति मिल चुकी है। अब मानो नया जीवन मिल गया है। दिन में दो कप ही चाय पीता हूं। बहुत हुआ तो तीन कप। इससे ज्यादा नहीं। अब मुझे लगता है, मैं किस तरह अपनी ही आदतों की गुलामी करता रहता था। अगर आप भी मेरी ही तरह चाय की जकड़ में हैं तो आजमा कर देखिए। यह आदत छोड़ कर बहुत राहत महसूस करेंगे। जो चाय जीवनदायी लगती थी, उसकी आप परवाह नहीं करेंगे। हालांकि अब नाश्ता करने के बाद चाय की तलब लगती है। लेकिन वह बेचैन करने वाली नहीं है। दिन भर चाय पीना अब बंद हो चुका है। यह ईश्वर की कृपा है।
2 comments:
आपने चाय की इतनी बढ़िया फोटो लगाई है कि बस देख कर लग रहा है कि उठाकर पी लें. तलब तो और बढ़ गई :(
चलिये, निजात मिली एक लत से...अति तो हर चीज की खराब है ही.
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