Saturday, May 14, 2011

सीता की अग्नि परीक्षा


विनय बिहारी सिंह



एक संत ने कल बहुत बढ़िया प्रसंग छेड़ा। उन्होंने कहा- राम ने सीता की अग्नि परीक्षा क्यों ली, यह बहुत से लोग नहीं जानते। जब भगवान राम ने बनवास का फैसला स्वीकार किया तो अग्नि माता उनके पास आईँ (कुछ लोग अग्नि देवता भी कहते हैं। लेकिन कुछ लोग अग्नि माता कहते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अग्नि भगवान का ही एक रूप है। उससे खाना भी पकता है और मृत्यु के बाद शरीर का दाह संस्कार भी होता है।) अग्नि माता ने भगवान राम से कहा- सीता को मैं अपने पास रखना चाहती हूं। वन में आपके साथ जाने के लिए मैं सीता की तरह ही एक छाया सीता बना देती हूं। हू-ब-हू उसी के जैसा। जब आप वापस लौटेंगे तो आप छाया सीता को मुझे लौटा दीजिएगा। मैं आपको असली सीता लौटा दूंगी। भगवान राम तैयार हो गए। वे इस बात को पहले से जानते थे। वे अंतर्यामी हैं। असली सीता अग्नि माता के पास चली गईं और छाया सीता राम के साथ वन में गईं। जब रावण वध और लंका विजय के बाद राम अयोध्या लौटे तो उन्हें असली सीता से मिलने की इच्छा हुई। वे अग्नि माता के पास थीं। लोगों के सामने भगवान राम यह रहस्य उजागर नहीं करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने छाया सीता से कहा- तुम्हारे बारे में लोगों की शंका है कि तुम रावण के पास रह कर अशुद्ध तो नहीं हो गई हो। हालांकि मैं जानता हूं कि तुम्हें कोई छू नहीं सकता (क्योंकि वे छाया सीता थीं।) तुम अग्नि परीक्षा दो। आग प्रज्वलित की गई। छाया सीता अग्नि माता के पास चली गईँ। बदले में असली सीता अग्नि के गर्भ से निकल आईँ। भगवान राम उन्हें देख कर बहुत प्रसन्न हुए। राम और सीता का मिलन हुआ और इस तरह जीवों को आनंद मिला। साधु ने कहा- राम और सीता हमारे भीतर ही हैं। गहरे ध्यान और जप से दोनों का जिस समय मिलन होगा, हम भगवान की अत्यधिक कृपा के पात्र हो जाएंगे।