Wednesday, May 18, 2011

आदि शंकराचार्य के बारे में कुछ और बातें


विनय बिहारी सिंह



आदि शंकाराचार्य ने ३२ वर्ष की आयु में अपना शरीर छोड़ा था। लेकिन इसके पहले ही वे देश के चारो कोनों पर चार पीठ बना गए। सभी महत्वपूर्ण ग्रंथों और ब्रह्मसूत्र का भाष्य लिखा। सन्यासियों के लिए दसनामी परंपरा शुरू की और अन्य अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए। जब वे सिर्फ आठ साल के थे तो उनका उपनयन संस्कार हुआ। उसी उम्र में वे वेद मंत्रों का स्पष्ट और शुद्ध उच्चारण करने लगे थे। वे बिना पुस्तक के पन्ने पलटे ही, श्लोकों की व्याख्या कर देते थे। आठ साल के इस विलक्षण बालक को देख कर दिग्गज विद्वान भी चकित थे। कुल ३२ सालों में ही उन्होंने जितने महत्वपूर्ण काम किए, उसे करने में एक साधारण आदमी को कई जन्म लग जाएंगे। इसीलिए आदि शंकराचार्य को अवतार कहा जाता है। लेकिन मनुष्य देह में जन्म लेने के कारण मनुष्य का अभिनय करना पड़ता है ताकि लोगों को शिक्षा मिल सके। एक बार आदि शंकराचार्य गंगा स्नान कर वापस आ रहे थे। तभी एक चांडाल बेचने के लिए मांस ले जा रहा था और उसकी देह शंकराचार्य से छू गई। शंकराचार्य ने कहा- तूने मेरा शरीर अपवित्र कर दिया? चांडाल हंसा और बोला- महाराज, न मैंने आपको छूआ और न आपने मुझे। क्योंकि आप भी आत्मा हैं और मैं भी। फिर मैं आपको छू ही कैसे सकता हूं। आत्मा को तो कोई छू ही नहीं सकता। कहा जाता है कि स्वयं भगवान ने लोगों की शिक्षा के लिए यह अभिनय किया। ताकि लोग भेदभाव, छुआछूत की मानसिकता से ऊपर उठें। शंकराचार्य इस घटना के पहले ही जानते थे कि ऐसा होने वाला है। लेकिन लोक शिक्षा के लिए उन्होंने यह घटना होने दी।

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