Wednesday, May 4, 2011

जो ईश्वर की चर्चा सुनना न चाहे


विनय बिहारी सिंह



भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि मैंने जो तुम्हें बातें बताईं (यानी गीता में उल्लिखित सत्य) उसे उन लोगों से बिल्कुल मत कहो जो ईश्वर में विश्वास नहीं करते या जो सुनने के इच्छुक नहीं हों या जो ईश्वर को भला बुरा कहते रहते हैं। यानी ईश्वरीय चर्चा किसी के साथ जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। यह भगवान के नियमों के खिलाफ है। अगर कोई व्यक्ति ईश्वर चर्चा को ऊबाऊ मानता है, तो उससे ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए। ऐसे अनेक लोग हैं जो सिर्फ उन्हीं बातों पर विश्वास करते हैं जो दिखाई देती हैं। भौतिक जगत दिखाई देता है, इसलिए वे मानते हैं कि भौतिक जगत के अलावा और कुछ भी सत्य नहीं है। वे कहते हैं कि भगवान दिखाई तो देते नहीं हैं। हम कैसे मान लें कि वे हैं। गीता में ही भगवान ने आसुरी संपदा और दैवी संपदा के बारे में बताया है। जो आसुरी संपदा के स्वामी हैं वे कहते हैं कि यह संसार स्त्री- पुरुष के संपर्क से बना है। ईश्वर का तो कोई अस्तित्व ही नहीं है। जो कुछ है वह देह और यह संसार ही है। बाकी कुछ नहीं। यही है आसुरी संपदा वाले व्यक्ति की सोच। लेकिन दैवी संपदा वाला व्यक्ति यह सुन कर मन ही मन हंसता है। क्योंकि मन सूक्ष्म है। मन तो दिखाई नहीं देता। तो क्या मन के अस्तित्व से ही हम इंकार कर दें? अगर कोई कहे कि चूंकि मन दिखाई नहीं देता, इसलिए हम नहीं मानते कि मन होता है, तो यह हास्यास्पद बात होगी। दैवी संपदा वाला व्यक्ति कहता है- तू इस दुनिया में क्या लेकर आया है और क्या लेकर जाएगा? जरा सोच। तू अपने कर्मों को लेकर आया है औऱ कर्मों को लेकर ही जाएगा। बाकी तेरे साथ कुछ भी नहीं जाएगा। इसलिए तू अच्छा काम कर। अच्छा सोच और ईश्वर के प्रेम में मस्त हो जा। तेरा कल्याण हो जाएगा।
भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है- हे अर्जुन, तू मेरा भक्त बन, मुझे प्रणाम कर और मेरी शरण में रह। मैं तुझे सारे पापों से मुक्त कर दूंगा और तुम मुझे ही प्राप्त कर लोगे। भगवान का संकेत है कि ईश्वर ही सब कुछ हैं। वहीं समर्पण कर दो। कल्याण इसी में है।

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