Wednesday, May 25, 2011

गर्भ के बच्चे के भीतर प्राण किसने डाला


विनय बिहारी सिंह



मां के पेट में बच्चा तैयार हुआ। उसके भीतर प्राण किसने डाला? इस प्रश्न पर अगर गहराई से विचार करें तो आप पाएंगे कि यह रहस्यमय प्राण प्रतिष्ठा भगवान करते हैं। माता या पिता बच्चे का प्राण रोपण नहीं कर सकते। क्योंकि वे स्वयं नश्वर हैं। बच्चे के माता- पिता का अपना प्राण ही अपने वश में नहीं है तो वे अपने बच्चे का प्राण कहां से ला कर रोप देंगे? मां- बाप के हाथ में कुछ नहीं हैं। वे सिर्फ कठपुतली हैं? प्रकृति उनसे जैसा कराती है, वे करते हैं। बाकी काम भगवान का होता है। मनुष्य सिर्फ माध्यम है। गर्भ में सोया हुआ बच्चा, अर्द्ध बेहोशी में रहता है। हम सभी गर्भ में नौ महीने रहे हैं। मां के पेट में। लेकिन हम पेट के भीतर कैसे रहे? आपको याद है? नहीं। हमारी चेतना इस स्तर की नहीं थी कि हम पेट के भीतर रहने के बाद उस अनुभव को याद रख सकें। हम अर्द्ध चेतना में वहां रहते हैं। बाहर आते हैं तो भी हमारी चेतना विकसित नहीं रहती। जब हमारी चेतना लौटती है तो हमारी उम्र तीन साल या चार साल हो चुकी होती है। फिर धीरे- धीरे यह विकसित होती जाती है। तब हम खुद को बहुत चालाक समझने लगते हैं। मनुष्य के भीतर धोखा-धड़ी, बेईमानी, ईर्ष्या, द्वेष, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि सक्रिय हो जाते हैं। लेकिन जो पवित्र आत्माएं हैं उनके भीतर प्रेम, परोपकार, दान, पूजा- पाठ, ध्यान, सेवा, तितिक्षा, सहायता, ईमानदारी, निष्कामता, निरपेक्षता, अक्रोध, अलोभ, मोहरहितता का भाव पुष्ट होता जाता है। लेकिन हमारे प्राण की चाभी भगवान के पास रहती है। वे जब चाहें हमें अपने पास बुला सकते हैं। चाहे हम जितना भी अपने शरीर से प्रेम करें, इसे छोड़ना ही पड़ेगा। चाहे हम जितना भी अपने परिवार, बच्चों, धन- संपत्ति, रिश्तेदारों या मित्रों या हितैषियों को प्रेम करें, उन्हें एक दिन छोड़ कर भगवान के पास जाना ही पड़ेगा। भगवान हमें सदा प्रेम करते हैं। वे चाहते हैं कि हम उन्हें याद करें, पुकारें। वे हमारी पुकार पर आएं। हमें प्यार करें। लेकिन हम हैं कि संसार में इस तरह लिप्त हैं कि भगवान के लिए समय नहीं मिलता। क्या आश्चर्य है। जिसने हमारे भीतर प्राण फूंक कर हमें संसार में भेजा, उसे हम भूल जाते हैं और संसार के प्रपंचों में रम जाते हैं। रामकृष्ण परमहंस और परमहंस योगानंद ने कहा है- संसार में रहो लेकिन संसार का हो कर मत रहो। भगवान का होकर रहो।

1 comment:

पृथ्वीराज said...

भगवान की चर्चा करके कितना आनन्द मिलता है.
आपका ब्लाग अध्यात्मिक रस से भरा हुआ है.
आपकी पोस्ट पढ़कर बहुत शांति मिलती है.