Tuesday, May 10, 2011

गहरी और अनन्य भक्ति


विनय बिहारी सिंह




कथा है कि एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश अपनी- अपनी शक्तियों पर मुग्ध थे। ब्रह्मा मुग्ध थे कि इस सृष्टि में उनकी अनुमति के अलावा कुछ भी बनाया नहीं जा सकता। वे स्रष्टा हैं। विष्णु मुग्ध थे कि वे इस समूची सृष्टि का पालन करते हैं। और महेश या भगवान शंकर मुग्ध थे कि वे इस सृष्टि के किसी भी वस्तु का संहार कर सकते हैं। तभी एक छोटा बालक आया और तीनों देवताओं से बारी- बारी से एक तिनका बनाने, उसका पालन करने और उसे नष्ट करने को कहा। तीनों देवताओं ने बारी- बारी से अपनी सृष्टि, पोषण और संहार शक्ति का प्रदर्शन करना चाहा। लेकिन आश्चर्य। वे ऐसा कर न सके। तब उस बालक ने ब्रह्मा जी से पूछा- क्या आपने मुझे बनाया है? ब्रह्मा ने कहा- नहीं। विष्णु जी ने कहा- मैं तुम्हारा पोषण नहीं करता। भगवान शंकर ने कहा- मैं तुम्हारा संहार नहीं कर सकता। लेकिन तुम हो कौन? उस लड़के ने कहा- मैं इन तीनों गुणों से अतीत हूं। ऐसी शक्ति मुझे भक्ति ने दी है। सभी देवताओं ने कहा- हां, भगवान के अनन्य भक्त की शक्ति असीम होती है। क्योंकि भगवान उसे प्यार करते हैं।
रामकृष्ण परमहंस कहते थे कि ईश्वर को पाने का सबसे कारगर तरीका है- गहरी और अनन्य भक्ति। भक्ति का आकर्षण इतना गहरा होता है कि भगवान खिंचे चले आते हैं। हनुमान जी को भगवान क्यों माना जाता है? क्योंकि वे भगवान राम के साथ एक हो गए हैं। भक्त और भगवान के बीच अंतर नहीं रह जाता। लेकिन कब? जब यह भक्ति चरम पर पहुंच जाए। भक्त को भगवान के अलावा कुछ भी अच्छा न लगे। वह भगवान में ही सांस ले। एक क्षण भी ईश्वर से अलग रहना उसके लिए मुश्किल हो। और भगवान शिव? वे तो अनंत माने जाते हैं क्योंकि हमेशा उन्हें ध्यान की मुद्रा में ही दिखाया जाता है। ध्यान के माध्यम से वे अनंत भगवान के संपर्क में रहते हैं।

1 comment:

vandana gupta said...

बिल्कुल सही बात कही है ……………आभार्।