Tuesday, August 11, 2009

एक सन्यासी ने बाघ को काबू में किया

विनय बिहारी सिंह

यह प्रसंग हाल ही में पढ़ा बांग्ला में छपी पुस्तक तपोभूमि नर्मदा में। इसके लेखक हैं- शैलेंद्र नारायण घोषाल शास्त्री । शास्त्री जी दिवंगत हो चुके हैं। वे वैदिक इंस्टीट्यूट के निदेशक थे। उनके पिता ने उन्हें कहा कि पवित्र नदी नर्मदा की परिक्रमा करने से दिव्य संतों के दर्शन होंगे और मनुष्य जीवन सार्थक होगा। युवा होते ही वे नर्मदा परिक्रमा के लिए निकल पड़े। रास्ते में एक दिव्य साधु सोमानंद जी से भेंट हुई। वे पागलों की तरह रहते थे और कोई भी उन्हें देख कर डर जाता था। लेकिन थे वे उच्चकोटि के संत। जब लेखक अकेले परिक्रमा करते हुए उनके रहने के स्थान पर पहुंचे तो इस साधु ने उन्हें अपने साथ ठहरने की अनुमति दे दी। वहीं उनके दिव्य गुणों को लेखक ने देखा। एक बार परिक्रमा करते हुए लेखक जब एक साधु मंडली के साथ जा मिले तो चलते हुए एक जंगल पड़ा। वहां खुले मैदान में सबको ठहरना पड़ा। चारो तरफ धुनी जला कर साधु बैठ गए और जप करने लगे- हर नर्मदे, हर। दूसरा मंत्र वे जपने लगे- रेवा, रेवा, रेवा। जब लगा कि धुनी बुझते ही बाघ उन पर आक्रमण करेंगे तभी लेखक ने साधु सोमानंद को याद किया। वे तत्क्षण वहां उपस्थित हो गए। उन्हें देख कर शेर मानों पालतू जानवर हो गए। उन्होंने एक शेर के गालों को पकड़ा और पुचकारते हुए कहा- मैंने तुम लोगों से बार- बार कहा है कि नर्मदा परिक्रमा करने वालों का रक्त कड़वा होता है। उनका मांस खा कर तुम्हारा अहित होगा। लेकिन तुम फिर भी आ गए? जाओ भागो यहां से। और शेर पालतू कुत्ते की तरह भाग खडे़ हुए। साधु आश्चर्यचकित हो गए। हालांकि उन्हें मालूम था कि कोई भी उच्चकोटि का सन्यासी किसी भी जीव को काबू में कर सकता है। यह कैसे संभव है? हर जीव के मस्तिष्क की एक सीमा होती है। लेकिन उच्च कोटि के संतों का मस्तिष्क अनंत शक्तिशाली होता है। वे किसी भी जड़ और चेतन को अपने वश में कर सकते हैं।

2 comments:

Unknown said...

bheetree shakti se sab kuchh samabhav hai........
umda post !

Udan Tashtari said...

आभार इस पोस्ट का.