विनय बिहारी सिंह
सीता जी की खोज में जब भगवान राम वन में भटक रहे थे और हा सीते, हा सीते कर रहे थे तो माता पार्वती ने भगवान शंकर से पूछा कि आप तो भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम और सबका आराध्य कहते हैं। लेकिन वे तो पत्नी के लिए इतने व्याकुल हैं जैसे कोई सामान्य व्यक्ति। फिर इनका ईश्वरीय स्वरूप कहां बिला गया? भगवान शंकर ने कहा कि यह उनकी मनुष्य अवतार की लीला है। अगर मनुष्य में जन्म लिया है तो पीड़ा, दुख, सुख औऱ वे सभी भाव तो दिखाने पड़ेंगे जो एक मनुष्य में होती हैं। लेकिन वे यह सब नाटक के रूप में कर रहे हैं। भगवान शंकर ने कहा कि अगर विश्वास न हो तो तुम खुद परीक्षा ले लो। मां पार्वती ने हू- ब- हू सीता का रूप धरा और सीधे राम के सामने खड़ी हो गईं। भगवान राम ने पूछा- मां, पार्वती आप यहां क्यों खड़ी हैं? शंकर जी कहां हैं। कथा है कि मां पार्वती लज्जित हो गईँ। अब आइए तात्विक चर्चा पर। मां सीता स्वयंवर में जाने के पहले मां पार्वती के ही मंदिर में प्रार्थना करने गई थीं कि राम से मेरा विवाह हो जाए। वही मां पार्वती भगवान राम की परीक्षा लेने कैसे पहुंच गईं? वे तो सर्वदर्शी हैं। संतों ने इसकी बहुत रोचक व्याख्या की है। रामचरितमानस में ये घटनाएं या कथाएं सामान्य पाठक के दिल में राम तत्व उतारने के लिए लिखी गई हैं। राम ने अपनी चेतना खोई नहीं थी। सीता जी के अपहरण के बाद भी वे चैतन्य थे। उधर रावण से उसकी पत्नी मंदोदरी लगातार प्रार्थना कर रही थी कि राम साधारण व्यक्ति नहीं हैं। वे ईश्वर के अवतार हैं। राम से संधि कर लीजिए। लेकिन रावण में अपने बल का अभिमान था। भगवान राम को दिखाना था कि चाहे कोई कितना भी बलशाली हो जाए- वह सर्वोच्च शक्ति के सामने बौना ही है। रावण, और उसके बेटों, भाइयों की मायावी ताकतें सर्वोच्च सत्ता के सामने जल कर राख हो गईं। सत्य तो ईश्वर ही है।
1 comment:
Very Intresting post....
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