Saturday, August 8, 2009

सूर्य उगने और डूबने से है ईश्वर का गहरा संबंध







विनय बिहारी सिंह



प्रकृति के सारे काम नियम से हो रहे हैं। सूर्य एक खास समय पर उगता और डूबता है। तारे और चांद एक खास समय पर उगते और अस्त होते हैं। एक खास समय पर कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष होता है। यह है ईश्वरीय नियम। यह नियम कभी टूटता नहीं है। दिन- रात का क्रम इसी कारण से होता है। रात गहराते ही हमें नींद दबोच लेती है। सुबह होते ही हम उठ जाते हैं। लेकिन कई लोग आलस्य में इस नियम को तोड़ देते हैं। वे रात को तो सोते ही हैं, दिन में भी सो जाते हैं। मानो सोते रहना ही उनका प्रिय काम हो। जो रात को जाग कर दफ्तरों में काम करते हैं, जैसे समाचार पत्रों या टीवी चैनलों या फैक्ट्रियों में उनकी बात अलग है। लेकिन जो बाकायदा रात को सोते हैं और दिन में भी सो जाते हैं उनका शरीर सुस्त होता जाता है। उनकी शारीरिक क्रियाएं, पाचन यहां तक कि तंत्रिका तंत्र भी सुस्त हो जाता है। मनुष्य में पशु वृत्ति आ जाती है। प्रकृति का नियम है कि हम फलों और सब्जियों को ज्यादा न तलें- भुनें। लेकिन अनेक लोग खूब तली- भुनी वस्तुएं खाना पसंद करते हैं। कुछ लोग तो नशीली चीजों के गुलाम ही हो जाते हैं जैसे- सिगरेट, शराब, तंबाकू, पान और गुटका इत्यादि। प्रकृति से दूर जाने से हमें कष्ट होता है। लेकिन तब भी हममें से अनेक लोग इस तथ्य को नहीं समझते। असमय और स्वाद के नाम पर खूब मसालेदार भोजन करना, असमय सोना, दूसरों की निंदा करना और खूब टीवी देखना यही कई लोगों का जीवन बन जाता है। संतों ने कहा है कि मनुष्य जन्म का दुरुपयोग है। जब ईश्वर अपने नियम में कोई ढील नहीं करता। ठीक समय पर सूर्योदय, ठीक समय पर सूर्यास्त, तो मनुष्य इससे शिक्षा क्यों नहीं लेता। प्रकृति से दूर जाने से हम कष्ट भोगते हैं। प्रकृति से तालमेल रखने से हमें सुख मिलता है। परमहंस योगानंद ने कहा है- गाड इज हार्मनी। ईश्वर मैत्रीपूर्ण है। यानी समस्वर है। सौंदर्य है। तालमेल वाला है। सुव्यवस्थित है। सामंजस्यपूर्ण है। और हम? अगर उल्टा- पुल्टा दिनचर्या अपनाते हैं तो ईश्वर से दूर जाते हैं। संतों ने कहा है हफ्ते या कम से कम महीने में एक दिन उपवास करना चाहिए। हममें से कितने लोग उपवास करना सुखद समझते हैं? भोजन करना ही तो सबको प्रिय है। उपवास बहुत कम लोगों को सुखद लगता है। तब तो शरीर का भीतरी तंत्र शुद्ध नहीं होगा। भीतर मल पदार्थ जमा होते रहेंगे और उपवास चाहे महीने में एक दिन का ही हो, हमें शुद्ध करता है, हमारे पाचन तंत्र को राहत देता है और शरीर पहले की तुलना में ज्यादा फुर्तीला होता है। हां, लेकिन उपवास से पहले किसी डायटीशियन से राय मशविरा कर लेना चाहिए। या डायटीशियन उपलब्ध नहीं हो तो डाक्टर से ही सलाह ले लेनी चाहिए। अगर कोई अनुभवी सन्यासी उपलब्ध हैं तो उनसे भी सलाह ली जा सकती है।

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