Tuesday, August 25, 2009

मन की चंचलता रोकने के उपाय

विनय बिहारी सिंह

गीता के छठवें अध्याय में अर्जुन ने भगवान कृष्ण से पूछा है- हे भगवान, मन बड़ा चंचल औऱ मथ देने वाला है। इसे वश में करना मानो वायु को वश में करने जैसा है। यानी जैसे हवा को वश में नहीं किया जा सकता, वैसे ही मन को वश में करना दुष्कर है। भगवान कृष्ण ने कहा- हां अर्जुन, मन को रोकना कठिन है। लेकिन अभ्यास और वैराग्य के द्वारा इसे वश में किया जा सकता है। अभ्यास कैसा? इसी छठवें अध्याय में ही भगवान ने कहा है- मन जहां, जहां जाए, उसे रोक कर बार- बार भगवान में लगाना। इसे कुछ संत अभ्यास योग भी कहते हैं। लेकिन यह कैसे संभव है? यह तभी संभव होगा जब मन पर आप पैनी नजर रखें। आप ध्यान कर रहे हैं और मन को भी देख रहे हैं। हां, यह भगवान में लगा है। अचानक यह आपको चकमा देता है और सांसारिक प्रपंच में चला जाता है। चूंकि आप मन के प्रति सजग और सचेत हैं, इसलिए इसे फिर भगवान के पास खींच लाइए। इसमें ऊबने से काम नहीं चलेगा। मन की चालाकियां आपको पकड़नी पड़ेंगी। आप कहेंगे, मन तो मेरा है। यह चालाकी कैसे करता है? जी हां, मन बहुत चालाक है और अगर यह आपके वश में होता तो फिर चिंता ही क्या थी। तब तो आप जो कहते वही करता। लेकिन यह मन तो किसी न किसी इंद्रिय के माध्यम से आनंद चाहता है। मन खुद ही इंद्रिय है। शास्त्रों में कहा है- मन एव मनुष्याणां, कारणं बंध मोक्षयो। मन अगर वश में हो तो आप मुक्त हो जाते हैं। लेकिन अगर वश में नहीं हैं तो आप इसके गुलाम हो जाते हैं औऱ यही बंधन है। इसी से मुक्त होने के लिए तो साधक छटपटाता है, भगवान से प्रार्थना करता है, जप और ध्यान करता है। वह लगातार भगवान से योग चाहता है। भगवान से हमारा जब तक वियोग है तब तक दुख और पीड़ा है, तनाव और तकलीफ है। लेकिन ज्योंही योग हो गया, बस फिर आपको कोई चिंता नहीं। आपकी हर परेशानी हल होती जाएगी। जो परेशानी पहाड़ लग रही है, वह मामूली लगने लगेगी। और वैराग्य क्या है? वैराग्य है कि यह शरीर नश्वर है। और मैं यह शरीर नहीं हूं, मन नहीं हूं, बुद्धि नहीं हूं, अहंकार नहीं हूं। तो फिर क्या हूं। मैं हूं सिर्फ सच्चिदानंद। मैं पवित्र आत्मा हूं। इस संसार में मैं पिछले जन्मों के संस्कार और आसक्तियां ले कर आया हूं। वही भोग रहा हूं। हे ईश्वर मेरी आसक्तियों का नाश कीजिए और मुझे अपने स्वरूप का दर्शन कराइए। मुझे अब यह सांसारिक प्रपंच अच्छा नहीं लग रहा है। बस धीरे- धीरे आपका मन भगवान की तरफ खिंचने लगेगा। तब आपको ध्यान करना नहीं पड़ेगा, ध्यान अपने आप होने लगेगा।

3 comments:

Mahamandal blog spot.com said...

badhai ho, bahut achha likha hai.

Anonymous said...

आपका धन्यवाद.... अच्छी जानकारी दी

Anonymous said...

आपका धन्यवाद.... अच्छी जानकारी दी