विनय बिहारी सिंह
गीता के आठवें अध्याय में भगवान कृष्ण ने कहा है कि सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म है सर्वशक्तिमान परमात्मा। इसे जो जान लेता है, उसकी मुक्ति निश्चित है। तब आप पूछ सकते हैं कि अगर भगवान सूक्ष्म है तो परम भक्तों को कैसे दर्शन देते हैं। इसका जवाब भी गीता में ही है। भगवान कृष्ण कहते हैं कि वे साकार भी हैं और निराकार भी। वे सूक्ष्म भी हैं और स्थूल भी। जो अनंत शक्तिशाली है, क्या उसके लिए संभव नहीं है कि वह कृष्ण रूप में आ जाए। जो अनंत है, वही सर्व शक्तिमान भी है। ईश्वर के गुणों का अंत नहीं है। ईश्वर के लिए कुछ असंभव भी नहीं है। यह सृष्टि जिस तरह ठीक नियम से चल रही है, उसके नियंता की नजर से क्या कुछ भी चूक सकता है? ईश्वर के बारे में आप जितना सोचेंगे, हैरान होंगे। एक छोटा सा बरगद का बीज किस चमत्कारिक ढंग से विशाल वृक्ष बन जाता है, पेड़- पौधों की छोटी सी पत्तियां कैसे फोटो सिंथेसिस के जरिए भोजन तैयार कर पूरे वृक्ष या पौधे को जीवित रखती हैं, और ठीक समय पर कैसे दिन औऱ रात का क्रम चलता रहता है, कैसे ठीक समय पर ऋतुएं बदलती रहती हैं। इन सबके पीछे कैसे अदृश्य भगवान की पैनी नजर है। कभी एकांत में बैठ कर चैन से सोचिए तो भगवान के इन चमत्कारों का आनंद ले सकते हैं। आप कह सकते हैं कि जीवन में इतना तनाव है, भागदौड़ और समस्याएं हैं तो चैन से ईश्वर के बारे में सोचने का समय कहां है? हां, आप अपनी जगह ठीक हो सकते हैं लेकिन ईश्वर से दूर रह कर आपको क्या चैन मिलेगा? आप कहेंगे ईश्वर तो हमारे भीतर रहता है, ऐसा शास्त्र कहते हैं। फिर ईश्वर से हम दूर कैसे हैं। हां, यह ठीक है कि ईश्वर हमारे भीतर है, लेकिन हमने कभी यह महसूस किया है? हम तो हमेशा ही ईश्वर को छोड़ कर सब कुछ सोचते रहते हैं। ईश्वर हमसे दूर नहीं है, हम ईश्वर से दूर हैं। माया का परदा बीच में लटक रहा है। ईश्वर और हमारे बीच माया का परदा। जब हम चैतन्य होंगे, ईश्वर हमारे पास ही तो हैं।
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