विनय बिहारी सिंह
मन की चार अवस्थाएं होती हैं- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। मन संकल्प विकल्प करता है। मान लीजिए कि कोई एक फूल आपने देखा और उसे पहचान नहीं पा रहे हैं। तो आपके दिमाग में प्रश्न उठा- यह कौन सा फूल है? जूही का या रात की रानी का। फिर आपने पूछताछ करके और दोनों पौधों के फूलों से मिला कर निश्चित कर लिया कि यह तो जूही का फूल है। सुगंध भी वही है। तो जहां प्रश्न पैदा हुआ- वह आपका मन है। जिसने तय कर दिया कि यह जूही का फूल है- वह आपकी बुद्धि है। यह फूल जब भी आप देखेंगे तो तुरंत आपका दिमाग कहेगा कि यह जूही का फूल है। यह हुआ- चित्त। चित्त वह है जिस पर आपकी स्मृति की अमिट छाप पड़ जाती है। और मैंने किया, मैंने खाया, मैं अमुक हूं। यह अहंकार है। संतों ने कहा है कि जब तक ये चारों आपको घेरे रहेंगे, आप ईश्वर से दूर रहेंगे। मन हमेशा संकल्प- विकल्प करता रहता है। इसीलिए वह इतना चंचल है कि कभी चैन से नहीं बैठता। जब चैन से बैठता नहीं तो ईश्वर का ध्यान कैसे करेगा? ईश्वर तो शांति के साम्राज्य में रहते हैं। आप कहेंगे- इतना तनाव है जीवन में, किसके पास शांति है? हां। सच है। आज का जीवन बहुत सारी व्यस्तताओं से भरा है। लेकिन आपको ईश्वर के लिए समय निकालना पड़ेगा। क्योंकि ईश्वर हैं तभी आप भी हैं। अगर आपका अस्तित्व है तो ईश्वर के कारण ही है। एक नास्तिक व्यक्ति ने कहा- जब ईश्वर दिखता ही नहीं तो फिर हम कैसे विश्वास कर लें उस पर? तो उससे संत ने कहा- पानी कैसे बनता है, यह आपको दिखता है? वह तो हाइड्रोजन और आक्सीजन के मिश्रण से बनता है। लेकिन पानी पीते हुए क्या आप हाइड्रोजन या आक्सीजन के बारे में सोचते हैं? नहीं। अगर हाइड्रोजन नहीं दिखता तो क्या वह पानी में नहीं है? तब क्या आप हाइड्रोजन के अस्तित्व से इंकार कर देंगे? ऐसा कौन है जो इंकार करेगा। पानी तो हाइड्रोजन और आक्सीजन से ही बनता है। इसी तरह ईश्वर हममें, आपमें हर जगह पर हैं। उन्हें महसूस करने के लिए आपको शांत होना पड़ेगा। कुछ विधियां हैं- जैसे- ध्यान, जप और चरम भक्ति। तब भगवान का अनुभव होगा आपको। संत पागल नहीं होते कि ईश्वर के लिए अपना सारा जीवन दे देते हैं। सर्वशक्तिमान, सर्वग्याता और सर्वग्य से कौन प्रेम करना नहीं चाहेगा? उसका एक अंश भी आप महसूस कर पाए तो आपका जीवन रूपांतरित हो जाएगा। आप हमेशा आनंद में रहेंगे। संत तो हमेशा ही आनंद में रहते हैं। आप अरबों रुपए पा कर भी जो आनंद नहीं पा सकते उसे संत अपनी साधना से पा लेते हैं। वह आनंद है- सच्चिदानंद। आपको तब पूरा ब्रह्मांड आनंदमय लगेगा।
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