विनय बिहारी सिंह
घनघोर जाड़े में भी कई साधु नंगे बदन रहते हैं और उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। यह कैसे संभव है? कुछ साधओं से इस संबंध में बातें हुईं। एक साधु ने कहा- शरीर को आप जैसा ढालेंगे, वह वैसा ही हो जाएगा। हां, जाड़े से बचने के लिए एक खास प्राणायाम करना जरूरी होता है। उसके बाद ठंड आपसे दूर भागती है। मनुष्य के शरीर में गजब की सहनशक्ति है, बशर्ते तनिक धैर्य रखा जाए। दूसरे साधु ने कहा कि वह संखिया का प्रयोग करता है, इसलिए जाड़ा नहीं लगता। एक अन्य साधु ने कहा कि उसके पास जंगली जड़ी- बूटियों की भस्म है, जिसके कारण उसे जाड़ा नहीं लगता। आप पूछ सकते हैं कि किसकी बात सही है? मेरे ख्याल से तीनों ही साधुओं की बात सच है। कैसे? आइए देखें। पहले साधु ने जो कहा, उसके मुताबिक शरीर के भीतर अद्भुत ताप शक्ति है। हम जब स्वेटर पहनते हैं तो स्वेटर गर्म नहीं होता। स्वेटर या कोट तो हमारे ही शरीर के ताप या हमारे शरीर की गर्मी को बाहर नहीं जाने देते और हम गर्माहट महसूस करते हैं। लेकिन एक तरह की विशेष शारीरिक क्रिया या प्राणायाम है जिसके करने से शरीर का तापमान नंगे बदन रह कर भी आपको ठंड से बचाएगा और आपको कोई कष्ट नहीं होगा। इसकी पुष्टि अन्य स्थानों पर रहने वाले साधुओं ने भी की। दूसरे साधु की बात करें। संखिया खाने वाले को ठंड बिल्कुल नहीं लगती। यह सच है। अगर आप दियासलाई की काठी की नोंक बराबर भी संखिया खा लें तो कड़ी ठंडी रात में भी आराम से बिना रजाई को सो सकते हैं। अब तीसरे साधु की बात। जंगलों में जड़ी- बूटियों की भरमार है। इनमें ऐसी जड़ी- बूटियां भी हैं जिनके पत्तों को जला कर राख किया जाता है और उसे शरीर पर लगा लिया जाता है। यह रसायन ऊनी कपड़े से भी गर्म होता है।
2 comments:
Very Intresting Information.....
acchi jankari ....
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