Saturday, August 1, 2009

अंगुलीमाल पर भगवान बुद्ध की कृपा

विनय बिहारी सिंह

खूंखार डकैत अंगुलीमाल के बारे में सभी जानते हैं। वह अपने शिकार को लूट लेता था और उसकी हत्या भी कर देता था। फिर उसकी उंगली काट कर उसकी माला बना कर पहन लेता था। उसके गले की उंगलियों को गिन कर समझा जा सकता था कि आज उसने कितने लोगों को मारा है। एक बार भगवान बुद्ध उसी रास्ते से जाने लगे जिसमें अंगुलीमाल का अड्डा पड़ता था। लोगों ने उन्हें रोका- भगवन, इस रास्ते से मत जाइए। आगे अंगुलीमाल मिलेगा जो अत्यंत क्रूर लुटेरा है। जिसके पास कुछ नहीं होता, उसे भी मार डालता है। भगवान बुद्ध पर इस चेतावनी का कोई असर नहीं पड़ा। वे आगे बढ़ते गए। उनके पीछे उनके समर्पित शिष्यों का छोटा सा काफिला चलता गया। अंगुलीमाल ने इन लोगों को देखा तो खुशी से झूम उठा। वह तेजी से इन लोगों की ओर आने लगा। भगवान बुद्ध ने उसे आते देखा, लेकिन वे शांत और संतुलित ढंग से ही आगे बढ़ते गए। पास आने पर अंगुलीमाल ने उन पर झपटना चाहा लेकिन आश्चर्य, उसके हाथ- पांव मानों बेकार हो गए थे। भगवान बुद्ध उसकी बगल से निकल गए। वह चिल्लाया- सन्यासी, रुको। हालांकि वह जानता था कि कोई रुकेगा नहीं। लेकिन भगवान बुद्ध अचानक रुक गए औऱ कहा- लो मैं रुक गया। मैं तो रुक गया हूं लेकिन तुम नहीं रुक रहे हो और लोगों की हत्याएं कर उनकी अंगुलियों की माला पहन कर खुद को बेताज बादशाह समझ रहे हो। तुम्हारा रास्ता दुख, पीड़ा और बेचैनी की ओर जाता है। हमारा रास्ता शांति और आनंद की तरफ जाता है। तुम्हें किस रास्ते की तलाश है? भगवान बुद्ध के शब्दों और उनकी साक्षात उपस्थिति में एक तरह का जादू था। अंगुलीमाल तो हक्का बक्का रह गया। उसे लगा कि यह सन्यासी तो ठीक ही कह रहा है। उसने अंगुलियों की माला दूर फेंक दी और बुद्ध के कदमों में गिर पड़ा। यह बुद्ध के शिष्यों के लिए चकित करने वाली घटना थी। एक दुर्दांत हत्यारे का रूपांतरण देख कर वे समझ गए- भगवान बुद्ध ने इसकी सारी मैल एक सेकेंड में धो दी। वह तुरंत भगवान बुद्ध का शिष्य बन गया। अंगुलीमाल को अगले ही दिन समझ में आ गया- भगवान ही शांति और आनंद हैं। बाकी सब बकवास है।

1 comment:

Unknown said...

kaash is baat ka marm pratyek maanav samajh sake..............