Wednesday, August 19, 2009

हमेशा कैसे याद रखें ईश्वर को

विनय बिहारी सिंह

आपके मन में प्रश्न उठ सकता है कि आदमी २४ घंटे काम-काज में लगा रहता है। तरह- तरह की समस्याएं आती हैं, उनके बीच ईश्वर को हमेशा कैसे याद रख सकते हैं? यह तो संभव नहीं। निश्चित रूप से यह संभव है। आपको करना सिर्फ यह है कि यह मान कर चलिए कि जो भी अच्छा काम कर रहे हैं, वह ईश्वर के लिए है। आफिस जा रहे हैं तो ईश्वर के लिए, बच्चों से प्यार कर रहे हैं तो ईश्वर के लिए और खेलने जा रहे हैं तो ईश्वर के लिए। अब आप पूछ सकते हैं कि बाजार जाना ईश्वर के लिए कैसे हो सकता है? इसका जवाब है- आप घर के काम करके निश्चिंत होने की कोशिश कर रहे हैं ताकि ईश्वर का ध्यान कर सकें, उनकी पूजा कर सकें। हर काम आप इसलिए निपटा रहे हैं कि ईश्वर के लिए समय मिल सके। तो जब लक्ष्य के रूप में ईश्वर रहेंगे तो हमेशा आप ईश्वर में रहेंगे या नहीं? कुछ लोग तो बाजार जाते हुए, बस या ट्रेन में जाते हुए या घर लौटते हुए भी हे ईश्वर, हे ईश्वर का जाप या राम राम या ऊं शिव ऊं शिव का जाप करते रहते हैं। यह उनकी आदत में शुमार हो गया है। वे हर खाली समय मे ईश्वर को याद करते हैं। पहली बार कोई चीज तौलते हैं तो राम कहते हैं, दूसरी बार से २ या ३ कहते हैं। लेकिन पहली बार उनके मुंह से राम ही निकलता है। यह है अभ्यास। नाम लेते ही ईश्वर की तरफ ध्यान चला जाता है। ईश्वर की तरफ ध्यान रहने से आपका मन शांत रहेगा, आपको बुरे सपने नहीं आएंगे, आपका हर काम बनता जाएगा क्योंकि आप हमेशा ही ईश्वर की शरण में हैं। ईश्वर अपने शरणागत की रक्षा अवश्य करते हैं। यह उनका कानून है। जो उनकी शरण में है, उसकी सुरक्षा वे खुद करते हैं। संतों ने कहा है कि एक बार ईश्वर को हृदय की गहराई से पुकार कर देखिए। वे किस तरह आपकी सुनते हैं। लेकिन कुछ मनुष्य मतलबी होते हैं। जब दुख आया तो हे भगवान, हे भगवान की पुकार करेंगे। जैसे ही दुख टल जाएगा, वे भगवान को भूल जाएंगे और फिर दुनिया के प्रपंच में रुचि लेने लगेंगे। यह है माया का खेल। जो हमेशा ईश्वर की शरण में रहता है, वह माया से दूर होता जाता है और ईश्वरीय आनंद में मस्त रहता है। जैसे- कोई रसायन बनाने की खास विधि होती है, उसी तरह ईश्वर से संपर्क करने की विधि है। विधि क्या है? दिल से, मन से प्राण से ईश्वर को पुकारिए- हे ईश्वर मैं तुम्हें प्यार करता हूं। मैं तुम्हारा हो कर जीना चाहता हूं। कौन ऐसा करता है? ज्यादातर लोग तो दोस्त को, पत्नी को, प्रेमिका को, बेटे को, बेटी को बहू को पोते- पोती को और न जाने किस किस को प्यार करते हैं। ईश्वर को प्यार करने का विचार तो किसी के मन में नहीं आता। परिवार के लोगों यानी मां, बहन, बेटी, बेटा, पोती, पोता, दादा या दादी को प्यार करना चाहिए। अवश्य करना चाहिए। लेकिन जिस परम पिता ने हमें इतने अच्छे संबंधी मां, बाप या बहू- बेटा या बेटी दी है, उसको क्यों भूल जाएं? सबसे पहले तो उसी की याद आनी चाहिए।

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