Saturday, August 22, 2009

कर्ता तो ईश्वर ही है, हम सोचते हैं हमने किया

विनय बिहारी सिंह

कल मशहूर गायिका आशा भोसले से मिला। उन्होंने कहा- ईश्वर अपने आप देता है। मैंने तो उससे कुछ मांगा नहीं था और उसने मुझे सब कुछ दे दिया। मैं उससे अब क्या मांगू? सब कुछ तो है मेरे पास। बच्चे हुए। अब नाती- पोते हो गए हैं। सब कुछ है। लेकिन मुझे लगता है जीवन में सब कुछ अप्रत्याशित होता है। आपको जो मिलना होता है, वह मिल ही जाता है। भगवान दे कर खुश होते हैं। इसीलिए मैं किसी चीज के बारे में निश्चित रूप से नहीं कहती। ईश्वर जानें वे क्या करना चाहते हैं।

कोई बात जब मशहूर हस्ती कहती है तो उस पर लोगों का ध्यान जाता है। वैसे तो हम सभी जानते हैं कि ईश्वर ही इस संसार के आधार हैं। कहा भी है- सर्वम खल्विदम ब्रह्म.....नेह नानान्ति किन्चन...। यह भी कहा गया है कि - सर्वं ब्रह्ममयम जगत . यानी सब कुछ ब्रह्म ही है। यह भी कहा है- ईमानि सर्वानि भूतानि....। हर वस्तु में भगवान का अंश है। बांग्ला में एक गीत है- मां, सब काज करो तुमी, लोके बोले करी आमी।।(भक्त मां काली से कहता है- मां सब काम तो तुम करती हो, लेकिन लोग कहते हैं कि मैं करता हूं। यानी मैं तो तुम्हारे हाथों की कठपुतली हूं।) कई लोगों के देखने का नजरिया इतना सीमित है, सोचने का नजरिया इतना सीमित है कि उसमें भगवान भगवान का स्थान ही नहीं है। बहुत कम लोग २४ घंटे में एक बार सोच पाते हैं कि जिसने यह संसार बनाया, वह हमारा परम पिता है, माता है, सखा है और सर्वाधिक प्रियतम है। क्या हम भगवान से कभी दिल से कहते हैं- हे भगवान, मेरे भीतर अपने प्रति गहरा प्यार स्थापित करने में मदद करो। यह तो पक्का है कि भगवान दिल की पुकार सुनते हैं। क्या प्रत्येक दिन हमारे मन में आता है कि भगवान सर्वव्यापी है, सर्व शक्तिमान है और सर्वग्य है? क्या कभी हम इस तरह का चिंतन करते हैं? अगर नहीं तो इसमें हमारा ही दोष है। क्यों हम भगवान को हाशिए पर रख देते हैं? जिसने हमें जीवन दिया है, उसी को हाशिए पर रख कर क्या हम चालाकी करते हैं? नहीं। बिल्कुल नहीं। यह हमारी अग्यानता ही है। जिसे हमें प्राणों से भी अधिक प्यार करना चाहिए, उसी को भूल जाते हैं। मनुष्य का प्यार स्वार्थी होता है। आज खूब प्यार मिलेगा और कल कम। मित्रता में तो प्यार करते- करते लोग दुश्मन बन जाते हैं। संसार परिवर्तनशील है। तब आप पूछेंगे- तो क्या संसार के प्राणियों से हम प्यार न करें। क्या सबसे दूरी बना कर रखें? नहीं। बिल्कुल नहीं। सबसे प्यार से ही मिलना चाहिए। लेकिन सारा प्यार मनुष्य या पशु- पक्षी पर ही खर्च नहीं कर देना चाहिए। जिसने हमारे भीतर प्यार करने की क्षमता दी है, उसे हम क्यों भूलें? यह भी आश्चर्य की ही बात है कि ईश्वर के दर्शन के लिए कई लोग लालायित नहीं होते। उन्हें दुनिया की बातें ही मुग्धकारी लगती हैं। दुनिया भर की बातें, सिनेमा, टीवी, अखबार, गप लड़ाना, घूमना और सांसारिक वस्तुओं की कामना करना। यह होता तो सुख मिलता, वह होता तो सुख मिलता। सुख तो ईश्वर के सिवा कहीं मिल ही नहीं सकता। लेकिन हम हैं कि हाय, हाय करके जहां तहां सुख की खोज में लगे हुए हैं। भीतर ही भीतर असंतोष है। सुख नहीं मिल रहा है। इसका असंतोष। आप ईश्वर के संपर्क के सिवा कुछ भी कर लीजिए आनंद या सुख मिल ही नहीं सकता। यह आप आजमा कर देख सकते हैं।

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