Friday, August 7, 2009

कैसे है जगत मिथ्या?

विनय बिहारी सिंह


मेरे पास प्रश्न आए हैं कि जगत मिथ्या कैसे है? मेरा कहना है कि जब जगद्गुरु आदि शंकराचार्य और उनके पूर्ववर्ती ऋषियों ने कहा कि जगत मिथ्या, ईश्वर सत्य तो इसका अर्थ यही है कि यह जगत सत्य नहीं है। यहां हम अपने कर्मों और कामनाओं के कारण वापस आते हैं। कहां से वापस आते हैं? और कहां जाते हैं? ईश्वर के पास से आते हैं औऱ ईश्वर के पास ही वापस जाते हैं। बीच में यानी संसार में अपनी कामनाओं, वासनाओं और कृत्यों, संकल्पों के कारण नाना प्रकार के कीचड़ में फंसते हैं, दुख- पीड़ा और बेचैनी अनुभव करते हैं। त्रिताप- दैहिक, भौतिक और दैविक से पीड़ित होते हैं। लेकिन यह भोगना या भोजन करना या क्रोध करना या प्यार करना स्वप्नवत है क्योंकि कार्य और उसका परिणाम का नियम लगातार चल रहा है। हम जो कर रहे हैं उसकी प्रतिक्रिया हो रही है और हम उसमें फंस रहे हैं या मुक्त हो रहे हैं। यह हमारी क्रियाओं पर निर्भर है। अब आप पूछेंगे कि तब जगत मिथ्या कैसे है? तो मिथ्या इसलिए कि इस जीवन में हम डाक्टर हैं या पत्रकार हैं या वकील हैं या कुछ भी नहीं हैं, साधारण से कमाने वाले हैं तो यह कितने दिन तक के लिए है? ७० साल, ८० साल या १०० साल। फिर? फिर मृत्यु होगी औऱ नया जन्म होगा (गीता यही कहती है)। फिर हम नए रंग, रूप, नए माता- पिता औऱ नई जगह पर जन्म लेंगे। नया पेशा या नौकरी होगी। नया नाम, ठिकाना और नई जिदगी। फिर मृत्यु। फिर जन्म। आदि शंकराचार्य ने कहा है- पुनरपि जन्मम, पुनरपि मरणम, जननी जठरे, पुनरपि शयनम। तो मिथ्या है न जगत। हर बार का जन्म ही स्वप्नवत है। भोग फिर मृत्यु, फिर जन्म। आप कहेंगे- भूख लगती है। क्या यह भी मिथ्या है? जी हां। स्वप्न में जो कुछ होता है, वह मिथ्या ही है। इस स्वप्न शरीर को भूख लगती है और स्वप्न भोजन कर हम तृप्त होते हैं। फिर मरते हैं और फिर जन्म लेते हैं.। मनुष्य का लक्ष्य क्या है? उत्तर है- ईश्वर की प्राप्ति। हमारा जन्म ईश्वर को पाने के लिए ही होता है। मनुष्य जन्म में ही ईश्वर के प्राप्त करने के साधन प्राप्त किए जाते हैं। लेकिन हम अपना सारा जीवन तमाम तरह के प्रपंचों, कामनाओं और वासनाओं में खर्च कर देते हैं। कबीर दास ने यूं ही नहीं कहा है- माया महाठगिनि हम जानी।

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

ठीक से समझ नहीं आया। मैं तो समझता हूँ कि जगत को मिथ्या इस लिए कहा गया कि पदार्थ का जगत रूप स्थाई नहीं है।

akshey said...

braham satyam jagat mithyen . iska arth hai sansar nashwar hai tatha ishwar satya hai