विनय बिहारी सिंह
यूरोप में हाल ही में शोध हुआ है कि नौकरी जाने का डर नौकरी जाने से भी खतरनाक है। यानी अगर आप हमेशा डरते रहते हैं कि कहीं आपकी नौकरी चली न जाए तो आप के शरीर के हारमोन असंतुलित हो जाएंगे आप धीरे- धीरे डिप्रेशन के शिकार हो जाएंगे। इस तरह आपका जीवन उदास, निराश और इनफीरियारिटी कांप्लैक्स का शिकार हो जाएगा। शोध से यह भी पता चला है कि जिनकी नौकरी चली गई है, वे इन डरने वालों से ज्यादा स्वस्थ हैं और उनके भीतर लगातार डर की कोई गुंजाइश नहीं है। यह महत्वपूर्ण शोध है। हमारे यहां ऋषि- मुनियों औऱ अब तो आज के मनोचिकित्सक भी कह रहे हैं कि डर कर जीना खतरनाक है। इससे शरीर के तंत्रिका तंत्र पर लागातार धक्का लगता है और मनुष्य धीरे- धीरे कायर हो जाता है। कोई भी कठिन काम सामने आते ही वह डर जाता है और उसे लगता है कि मुझसे तो यह काम होगा ही नहीं। सामान्य से काम भी उसे कठिन लगने लगते हैं। मनोचिकित्सक कहते हैं कि नौकरी को लेकर ही नहीं किसी भी परिस्थिति में डरना नहीं चाहिए। डर हमारे लिए धीमे जहर का काम करता है। गीता में तो कहा गया है कि भय, लोभ, क्रोध और ईर्ष्या इत्यादि भाव मनुष्य को नुकसान पहुंचाते हैं। क्रोध तो पूरे नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) को हिला कर ऱख देता है। कभी कभी यह बहस छिड़ जाती है कि भय ज्यादा खतरनाक है या क्रोध। चोटी के मनोचिकित्सक हालांकि दोनों को समान घातक बताते हैं लेकिन लोभ और ईर्ष्या भी कम खतरनाक नहीं है। हमारे शरीर का केंद्र बिंदु है नर्वस सिस्टम। अगर इस पर अनायास ही दबाव पड़ता रहा तो एक दिन ऐसा आएगा कि हमें जीवन में चारो तरफ अंधेरा ही दिखाई देने लगेगा। इसलिए हमेशा मन में ईश्वर के प्रति विश्वास रखना चाहिए। ईश्वर हमारे साथ है तो फिर कोई चिंता की बात नहीं है। हम हर बाधा, हर परेशानी आसानी से दूर कर सकते हैं। किसी बात के लिए अपने मन में दुख नहीं पालना चाहिए। जो हो गया सो हो गया। अब अपने मन को ईश्वर के साथ जोड़ कर प्रसन्न रहना चाहिए। एक बार ईश्वर के हाथों में अपनी बागडोर सौंप देने के बाद आपको लगता है कि अब किसी बात का डर, किस बात की चिंता? मैं तो सो भी रहा हूं तो ईश्वर मेरी देख भाल कर रहे हैं। यह विचार कितना सुखद है। कई लोग रात को सोने के पहले ईश्वर से गहरी प्रार्थना करते हैं। इसके बाद ही सोते हैं। उन्हें खूब अच्छी नींद आती है। सुबह उनका मन प्रफुल्लित रहता है क्योंकि रात को उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की हुई होती है। वे सदा ईश्वर को अपने हृदय में रखते हैं। इसे करने में कोई दिक्कत भी नहीं है।