Saturday, April 30, 2011

ईश्वर का अद्भुत चमत्कार


विनय बिहारी सिंह



ईश्वर के चमत्कार लगातार सृष्टि में घटित होते हैं। लेकिन हम उन पर ध्यान नहीं दे पाते। कितने आश्चर्य की बात है। अब मनुष्य के शरीर को ही लीजिए। ईश्वर ने हमारा शरीर कोशिकाओं से बनाया है। कोशिकाओं से ही हाथ बने हैं और कोशिकाओं से ही आंख भी बनी है। लेकिन हम हाथ से नहीं देख सकते। सिर्फ आंख से ही देख सकते हैं। क्योंकि हाथ में न रेटिना है और न उसके तार दिमाग से जुड़े हैं। इसका अर्थ है ईश्वर ने हमारी कोशिकाओं को तरह- तरह से रूपांतरित किया है। यह क्या ईश्वर का चमत्कार नहीं है? इतनी छोटी आंख से हम एक विशाल पहाड़ देख पाते हैं। विशाल आकाश देख पाते हैं। क्या यह चमत्कार नहीं है? कोई पूछ सकता है कि इसमें चमत्कार क्या है? लेकिन इस चमत्कार को वे ज्यादा महसूस कर पाते हैं जिनकी आंखें काफी दिनों तक खराब रहती हैं और अचानक किसी दान की आंख का प्रत्यारोपण होने के बाद वे दुनिया के दृश्य देख पाते हैं। उन्हें आंखों की कीमत पता है। उन्हें आंखे चमत्कार लगती हैं। लेकिन हम सब तो स्वस्थ अंगों वाले लोग हैं। हम इसे टेकेन फार ग्रांटेड ले लेते हैं। यानी इसे अपनी गारंटी समझ लेते हैं कि हमारे अंग स्वस्थ होने ही चाहिए। एक ही कोशिका के माध्यम से हम देख पाते हैं और दूसरी के माध्यम से हम देख नहीं पाते। यह ईश्वर का खेल है। यह समूचा ब्रह्मांड ही ईश्वर का है। वे इसमें तरह- तरह के खेल करते रहते हैं। ताकि हम ऊबें नहीं। आखिर हम उनकी संतानें हैं। हमारा ख्याल वे नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा। इसीलिए तो ऋषियों ने कहा है- जगत मिथ्या, ईश्वर सत्य। मिथ्या का अर्थ है, जगत नश्वर है। ईश्वर ही शास्वत हैं। जगत स्वप्न की तरह है। इसमें लोग आते हैं और चले जाते हैं। आप स्वयं अगर २०० साल तक जीवित रह पाएंगे तो देखेंगे कि आपके सारे परिचित इस दुनिया से चले गए। आप अकेले रह गए। कहां गए सारे लोग? यह ईश्वर का ही चमत्कार है।।


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