Friday, April 22, 2011

शक्ति तो एक ही है चाहे शिव कहो या कृष्ण


विनय बिहारी सिंह



योगदा मठ, दक्षिणेश्वर में पिछले रविवार को स्वामी अमरानंद जी ने मनोहारी भजन गाए। वे नोएडा से एक दो दिन के लिए आए हुए थे। एक तो भगवान ने उन्हें अद्भुत सुरीला कंठ दिया है। ऊपर से भगवान कृष्ण का भजन- कृष्ण कन्हैया, कृष्ण कन्हैया। वृंदावन के बंसी बजैया।। की मिठास। इसके बाद उन्होंने हर, हर शिव, शिव। बम, बम भोले।। मोहक भजन गाया। फिर जगन्माता का भजन- जै मां जै। मुझे बार- बार महसूस हुआ है कि स्वामी अमरानंद जी जब इन भजनों को गाते हैं तो ये भजन विलक्षण बन जाते हैं। हम सब इन भजनों को सुन कर आनंदविभोर थे। लग रहा था कि आनंद की हाट लगी है। हम सब उसमें डूबे हुए हैं। इसके बाद एक भक्त ने पूछा- कभी कृष्ण तो कभी शिव जी तो कभी जगन्माता। स्वामी जी ने सिर्फ एक देवी या देवता को केंद्रित करके भजन क्यों नहीं गाया? तो एक पुराने भक्त ने जवाब दिया- सब भगवान के रूप तो हैं। भगवान तो एक ही हैं। एको अहम बहुस्यामि। मुझे तुरंत स्वामी शुद्धानंद जी की याद आ गई। वे ही तो कहते हैं कि भगवान कहते हैं- एको अहम बहुस्यामि। मैं एक ही हूं, अनेक रूप हैं मेरे। स्वामी शुद्धानंद जी कहते हैं- फूल का सुगंध लीजिए। उस फूल की कितनी पंखुड़ियां हैं, यह मत गिनिए। उन पंखुड़ियों की कटिंग कैसी है, यह मत देखिए। बस फूल की सुगंध का आनंद लीजिए। शुद्धानंद जी सिद्ध संत हैं। उनकी बातें गहरे दिल में उतर जाती हैं। वे कहते हैं- अपने इष्ट देवता (राम, कृष्ण या शिव) को केंद्र बना लीजिए। उन्हीं में डूबे रहिए। सोते, जागते, उठते- बैठते, चलते- फिरते, प्रत्येक क्षण उन्हीं का स्मरण कीजिए। मेरे प्रभु, मेरे प्रभु।

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