Friday, April 29, 2011

जैसी करनी, वैसी भरनी


विनय बिहारी सिंह



ऋषियों ने कहा है कि हम जैसा कर्म करते हैं, उसी के अनुसार हमें भोगाभोग मिलता है। यानी अगर हम लगातार किसी के प्रति खराब बातें सोच रहे हैं तो हमारे साथ भी खराब होने लगेगा। तुरंत भले न हो, कुछ दिनों बाद। या कुछ वर्षों बाद। लेकिन होगा जरूर। इसीलिए कहा गया है कि सद्विचार बहुत जरूरी है। अच्छी बातें, अच्छे विचार। इसीलिए कहा गया है कि सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया। सभी सुखी रहें। सभी में हम भी शामिल हो गए। गांव में एक वृद्धा मृत्यु शैया पर थीं। मैं वहां उपस्थित था। मेरी उम्र करीब १८ साल की होगी। परिजनों ने मुझसे कहा- ये बहुत साध्वी महिला रही हैं। इनसे आशीर्वाद मांग लो। वृद्धा ने मुझसे कहा- तुम खुश रहो, गांव के सभी लोग खुश रहें। साध्वी जैसी वृद्धा के ये आशीर्वचन मेरे हृदय पर अंकित हो गए। आज भी उनका यह आशीर्वाद मेरे कानों में गूंजता रहता है। मुझे लगा- मनुष्य को सिर्फ अपने बारे में ही नहीं सोचना चाहिए। ये पूरे गांव को आशीर्वाद दे रही हैं, जबकि गांव के लोग सुन भी नहीं रहे हैं। कैसा विशाल हृदय है इनका। आशीर्वाद के घंटा भर बाद ही उनका निधन हो गया। उनका प्राण शरीर से निकल गया। हम सब वहीं खड़े थे। प्राण निकलना कोई देख नहीं सकता। कहां गया प्राण? मैं बार- बार सोचता रहा। मेरे इस प्रश्न का उत्तर ३२ साल बाद गुरुदेव परमहंस योगानंद जी से मिला। तब लगा हम शरीर नहीं हैं। तुलसीदास ने ठीक ही कहा है- ईश्वर अंश जीव अविनासी।। जीव ईश्वर का अंश है। लेकिन माया का परदा इतना घना है कि उसे अपने असली रूप का पता नहीं चलता। ईश्वर से संपर्क करने पर माया का कुहासा छंटता है और दिव्य प्रकाश के दर्शन होते हैं। लेकिन इसके लिए मन शांत और स्थिर होना चाहिए। निरंतर जप, प्रार्थना और ध्यान से ही ईश्वर का आभास होगा।

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