विनय बिहारी सिंह
आज एक बहुत ही मनोहारी भजन सुना- मन रे भज ले हरि का नाम.....। भोर का समय था। वह अनजान व्यक्ति कहीं जा रहा था। रास्ते पर इक्का- दुक्का लोग जा रहे थे। भजन गाते हुए वह व्यक्ति इतना तल्लीन था कि मैं उसके पास क्षण भर के लिए ठिठका तो भी वह अपनी रौ में गाता रहा। उसकी आंखें अधखुली थीं। आगे की पंक्तियां याद तो नहीं, लेकिन उनका अर्थ था- ऐ मन, क्यों समय बरबाद कर रहे हो। क्या रखा है इस दुनिया में? यहां क्या लेकर आए हो? और क्या लेकर जाओगे? तुम अपने कर्म लेकर आए हो और कर्म ही लेकर जाओगे, अपनी कामनाएं लेकर जाओगे। ये कामनाएं तुम्हारी शत्रु हैं। छोड़ो यह प्रपंच और भगवान में रम जाओ। वहीं पर तुम्हें शांति और आनंद मिलेगा। भटको मत। जन्म- जन्मांतर से बहुत भटक चुके। अब तो संभलो। कितनी बार इस जाल में फंसोगे? हरि का भजन करो। हृदय की पुकार से हरि तुम्हारा भव बंधन काट देंगे और तुम मुक्त हो जाओगे। मैंने सोचा- कितने कम लोग भगवान के लिए तड़पते हैं। लेकिन जो तड़पते हैं, वे भाग्यशाली हैं।
1 comment:
ये मनवा ही तो सारे फ़साद की जड है यदि इस पर इसी प्रकार प्रहार किये जाते रहें तभी समझ सकता है।
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