Tuesday, April 5, 2011

यही तो है महिषासुर

विनय बिहारी सिंह

हमारे भीतर ही है महिषासुर। महिष यानी भैंसा। यानी कामनाओं- वासनाओं के न पूरा होने पर हिंसा में पागल मन। कहीं अपने ही लोगों के प्रति हिंसा, तो कहीं किसी दूसरे के प्रति। क्रोध, कुढ़न और बदले की भावना। यही तो है महिषासुर। हमारे अंदर जड़ जमा कर बैठा है। मां दुर्गा अराधना से मारा जाएगा यह महिषासुर। हमारे दैहिक, दैविक और भौतिक ताप यानी कष्ट दूर होंगे। मां दुर्गा की कैसे अराधना करें? गहरी भक्ति के साथ। भगवान ही शुरू में हैं, भगवान ही अंत में हैं और भगवान ही मध्य में हैं। यानी भगवान ही सर्वत्र हैं। भगवान की सेनानायक हैं मां दुर्गा। यानी भगवान का ही एक रूप हैं। उनके प्रसन्न होने पर हमारे भीतर और बाहर की सभी बाधाएं नष्ट हो जाएंगी और शांति का अनुभव शुरू हो जाएगा। एक साधु कहते हैं- अनेक लोग हमेशा दूसरों को दोष देते रहते हैं। अमुक ने ऐसा कर दिया वरना मेरा काम हो गया होता। वह काम उस समय होना ही नहीं था। कैसे हो जाता? समय आने पर आपका काम होगा। और अगर नहीं होगा तो इसी में आपकी भलाई है। भगवान के नियम में कहीं कोई त्रुटि नहीं है। हम अपने स्वार्थ में इतने अंधे हो जाते हैं कि भगवान को ही दोष देने लग जाते हैं। जो हमारे रक्षक हैं, वे हमारे साथ अन्याय कर ही नहीं सकते। मां दुर्गा ने अत्यंत बलवान महिषासुर का वध किया था। इसीलिए उनका नाम महिषासुर मर्दिनी पड़ा। हमारे भीतर हमारी कई खराब आदतें, कई खराब प्रवृत्तियां- जैसे भय, चिंता और दुख धीरे- धीरे महिषासुर बन जाते हैं और हमें सताने लगते हैं। आइए इस नवरात्रि के अवसर पर मां दुर्गा से प्रार्थना करें कि वे हमें सारी भव बाधाओं से दूर करें और हमें अपनी शरण में लेकर हमें मुक्ति का रास्ता दिखाएं।

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