Wednesday, April 6, 2011

संसार की बातें और भगवान



विनय बिहारी सिंह


संसार में आपकी बातें सबको अच्छी नहीं लगतीं। कई लोग आपकी बातों को चाव से सुनते हैं, लेकिन कई सुनना नहीं चाहते। आज देखा- एक बूढ़ा व्यक्ति ट्रेन में रिजर्वेशन के लिए अपने नंबर का इंतजार कर रहा था। वह रिजर्वेशन काउंटर पर उसके पहुंचने में अभी देर थी। वह व्यक्ति चाहता था कि आसपास के अनजान लोगों से बातें करे। लेकिन मैंने देखा उससे बातें करने को कोई भी व्यक्ति इच्छुक नहीं है। हर आदमी उसकी उपेक्षा कर रहा था। लेकिन वह आदमी लोगों की रुचि न रहने पर भी कुछ न कुछ बोल ही रहा था। लोग इससे भी ऊब रहे थे। अचानक लगा कि कोई व्यक्ति लोगों से बातचीत करने के लिए इतना आग्रही क्यों हो जाता है? क्या बातें करने के अभ्यास के कारण? शायद यही बात हो सकती है। आप कहेंगे मनुष्य है तो बातें करेगा ही। ठीक है। लेकिन जब कोई आपसे बात करने को इच्छुक न हो तो आप ईश्वर से मौन संवाद कर सकते हैं। रमण महर्षि कहते थे- ईश्वर से मौन संवाद, बोलने या जोर से प्रार्थना की अपेक्षा ज्यादा कारगर होता है। वे कहते थे- मन ही मन प्रार्थना कीजिए। विश्वास रखिए यह मौन संवाद ईश्वर सुन रहे हैं। परमहंस योगानंद जी कहते थे- ईश्वर आपकी प्रत्येक सोच के बारे में जानते हैं। आपकी मौन और भक्ति से ओतप्रोत प्रार्थना उन तक जरूर पहुंचती है। आपको यह विश्वास क्यों नहीं हो रहा है? जिस तरह आपके शरीर के किसी भी हिस्से में चिकोटी काटी जाती है तो आपको महसूस हो जाता है, ठीक उसी तरह इस ब्रह्मांड में जो कुछ भी सोचा जाता है, किया जाता है, ईश्वर उसे महसूस करते हैं। वे हर क्षण हमारे साथ होते हैं। जब हम गहरी नींद में सो जाते हैं तब भी। गीता में तो भगवान ने स्वयं ही कहा है कि भगवान सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म हैं। भक्ति के गहरे सागर में गोता लगाते ही यह अति सूक्ष्म भगवान आपके अनुभव में आ जाते हैं। कबीरदास ने तो कहा ही है-
पोथी पढ़ि, पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।

1 comment:

कविता रावत said...

यह आज की बहुत बड़ी त्रासदी है ..आज के समय में बुढ़ापे में आदमी अकेला बहुत महसूस कर रहा है. उससे बात करने वाला कोई नहीं होता है इसलिए वह बडबडाता है यह उस मानसिक स्थिति को दर्शाता है की वह कितना उपेक्षित है .. हाँ यह बहुत से लोगों को अच्छा नहीं लगता है लेकिन उसकी मनोदशा का आंकलन करने वाले शायद कोई नहीं होता है....मौन यदि आदमी धारण करें तो यह तो बहुत अछि बात है लेकिन जिसे आदत हो बोलने की वह यदि जिंदगी भर बोलता आया है तो वह अंत में क्या मौन रख सकेगा! ... सच में कबीर दास के दोहे आज भी बिलकुल हर जगह फिट हैं... काश सभी समझ पाते!
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ..आभार