विनय बिहारी सिंह
कबीरदास ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि ईश्वर के अलावा अन्य कहीं मन को केंद्रित करना, भारी भूल है। वे ईश्वर से प्रेम को महत्व देते हैं। प्रेम उनका केंद्रीय तत्व है। उनका एक दोहा इस तरह है-
ज्यों तिल मांहि तेल है, ज्यों चकमक में आग।
तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग।।
एक अन्य दोहा देखें-
जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान समान।।
जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण।।
क्या अद्भुत उदाहरण दिया है कबीरदास ने। तिल में तेल है, लेकिन प्रकट नहीं है। चिंगारी में आग है। ठीक उसी तरह मनुष्य के भीतर ईश्वर है। उसे देखना और महसूस करना है तो मन को स्थिर रख कर उस पर ध्यान केंद्रित करना पड़ेगा। तब जाकर ईश्वर का अनुभव होगा। वह है, लेकिन प्रकट नहीं है। तिल में तेल की तरह है। और प्रेम के बिना तो ईश्वर के करीब जाना असंभव है। कबीरदास ने कहा है कि जिस घट में प्रेम का संचार नहीं है, वह मुर्दा की तरह है। जैसे लोहार की धौंकनी। धौंकनी में प्राण नहीं हैं, वह उधार की हवा से लुहार की भट्ठी जलाए रखता है। ईश्वर से प्रेम में एक अद्भुत ताकत है। पहले ईश्वर को प्रेम कीजिए, फिर वही प्रेम ईश्वर को आपके पास खींच लाएगा। प्रेम में अद्भुत चुंबकीय आकर्षण होता है। इस अद्भुत ताकत को कबीरदास ने महसूस किया और सारे भक्तों के बीच घोषित कर दिया- प्रेम न खेतों नीपजे, प्रेम न हाट बिकाय।
प्रेम न खेत में पैदा किया जाता है और न बाजार में बिकता है। इसलिए इसका व्यापार नहीं हो सकता। यह अत्यंत पवित्र और मोहक तत्व है।
2 comments:
प्रेम में अद्भुत चुंबकीय आकर्षण होता है|. गाँठ बाँधने योग्य बात वाह सारगर्भित रचना स्वागत योग्य , आभार.....आपके व्लाग पर पहली बार आया और सारगर्भित पोस्ट पढ़ने को मिली बधाई
उत्तम पोस्ट
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