Wednesday, April 27, 2011

ब्रह्म और शक्ति एक है


विनय बिहारी सिंह



रामकृष्ण परमहंस ने कहा है- जब भगवान निष्क्रिय अवस्था में रहते हैं तो उन्हें ब्रह्म कहा जाता है और जब वे सृष्टि में सक्रिय होते हैं तो उन्हें शक्ति कहते हैं। जैसे स्थिर जल भी जल ही है और चंचल जल भी जल ही है। इसलिए भगवान ही ब्रह्म हैं और वही शक्ति भी हैं। एक वही हैं। उनके रूप भिन्न हैं। उन्होंने कहा है कि संसार में रहना चाहिए निर्लिप्त होकर। अगर उसमें लिप्त हुए तो बस हमारी आंख पर माया की पट्टी बंध जाएगी। हमें माया मोह के अलावा और कुछ नहीं दिखेगा। हम शरीर केंद्रित हो जाएंगे। इस शरीर को सजाने संवारने में लगे रहेंगे। अपने रिश्ते नातों को हद से ज्यादा बढ़ा लेते हैं। उनके जीवन का केंद्र हो जाता है रिश्ते नाते और अपनी देह का सुख। ऐसे में भगवान उन्हें भूले से भी याद नहीं आते। वे पूजा भी करते हैं तो मन रिश्ते नातों में ही घूमता रहता है। चैन से बैठ कर दस मिनट पूजा तक नहीं कर सकते। उन्हें हमेशा कोई न कोई काम ही याद आता रहता है। जबकि भगवान शांति और गहरी आस्था से मिलते हैं। वे हैं लेकिन आंखों पर लगी माया की पट्टी उन्हें देखने नहीं देती। इसलिए भगवान दिखते नहीं। महसूस नहीं होते। ज्योंही यह पट्टी हटेगी, वे स्पष्ट रूप से दिखेंगे, महसूस होंगे। परमहंस योगानंद जी ने कहा है- भगवान कहते हैं- मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं। मुझसे बातें करो। लेकिन हम कहते हैं कि अभी नहीं, बाद में। भगवान कहते हैं कि ठीक है, मैं इंतजार करूंगा। भगवान कृपालु हैं। वे हमारी उपेक्षा का बुरा नहीं मानते। वे चाहते हैं कि हम अपनी इच्छा से उन्हें प्रेम करें। वे जबरदस्ती नहीं करना चाहते। प्रेम क्या जबरदस्ती हो सकता है? वे हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। उधर भक्त भी उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। जिन भक्तों की तड़प चरम हो जाती है, भगवान उसे अपनी छाती से लगा लेते हैं। और वह भक्त धन्य हो जाता है। आनंदविभोर। प्रेम से ओतप्रोत।

2 comments:

ROHIT said...

अति सुंदर
वाकई मे भगवान बहुत दयालु है

दिनेशराय द्विवेदी said...

पहला वाक्य सांख्य से निसृत है।