Saturday, April 9, 2011

यह ब्रह्मांड क्या है, हम कहां से आए?



विनय बिहारी सिंह


कई लोग मानते ही नहीं कि भगवान हैं। उनके लिए जो कुछ दिखाई देता है वही अस्तित्व में है। उन्हें शायद पता नहीं कि हाइड्रोजन के दो और आक्सीजन के एक एटम मिल कर पानी बनाते हैं। पानी दिख रहा है लेकिन ज्योंही वह हाइड्रोजन और आक्सीजन में टूटता है, दिखना बंद हो जाता है क्योंकि गैसें दिखती नहीं हैं। अब आप नहीं कह सकते कि पानी का अस्तित्व तो है क्योंकि वह दिखता है और हाइड्रोजन व आक्सीजन का अस्तित्व नहीं है। ठीक इसी तरह ईश्वर के बनाए सुंदर फूल, पत्ते, आसमान, हवा, सुंदर वस्तुएं और सुंदर प्राणी, भोजन और स्वादिष्ट फल तो दिखते हैं लेकिन उसको उत्पन्न करने वाला भगवान इसलिए नहीं दिखता क्योंकि वह सर्वव्यापी है। हां, दिख सकता है जब आपके दिल भी उसके लिए तड़प हो। वह साकार रूप ले सकते हैं। वैसे वे निराकार हैं। लेकिन भक्त के लिए वे साकार हो जाते हैं। गीता में ग्यारहवें अध्याय में जब अर्जुन भगवान का विश्वरूप देखते हैं तो भयभीत हो जाते हैं। वे कांपते हुए कहते हैं- भगवान न आपका आदि देखता हूं और न अंत। आप अनेक बाहों वाले, अनेक उदरों वाले, अनेक मुख वाले और अनंत रूप वाले दिख रहे हैं। हजारों सूर्य के एक साथ प्रकाशित होने पर भी शायद उतना प्रकाश न हो जितने प्रकाशित आप हैं। भगवान कृपया आप उसी चतुर्भुज रूप में मेरे सामने प्रकट होइए जिसे देख कर मन आनंद विभोर हो जाता है। और भगवान फिर उसी चतुर्भुज रूप में आ जाते हैं। विश्वरूप उन्होंने अर्जुन को शिक्षा देने के लिए प्रकट किया था। जो लोग भगवान को नहीं मानते उन्हें यह बोध नहीं है कि वे इस धरती पर कहां से आए। जन्म से पहले वे कहां थे और मृत्यु के बाद कहां जाएंगे। यह ब्रह्मांड उनके जन्म के पहले भी था और बाद में भी रहेगा। हम अपने कर्मों और कामनाओं के कारण ही फिर- फिर जन्म लेते हैं और फिर- फिर मृत्यु को प्राप्त होते हैं। मनुष्य जीवन का एकमात्र उद्देश्य है- ईश्वर की प्राप्ति। इसके लिए ही भजन, जप, पूजा- पाठ, ध्यान का निर्देश है।

1 comment:

vandana gupta said...

आपका कहना बिल्कुल सही है विनय जी…………100 प्रतिशत सहमत हूँ । जिसने उसकी सत्ता को महसूस किया है वो ही उसे जान सकता है।