जब राधा को अहंकार हो गया
विनय बिहारी सिंह
बहुत ही पुरानी कथा है। राधा, भगवान कृष्ण की सबसे प्रिय शिष्या थीं। राधा की एक एक सांस भगवान कृष्ण के लिए थी। लेकिन एक बार उन्हें अहंकार हो गया कि भगवान उन्हें सबसे ज्यादा चाहते हैं। यह बात भगवान को मालूम हो गई। हम जिस क्षण कोई संकल्प लेते हैं या कुछ सोचते हैं भगवान जान जाते हैं। आखिर वे सर्वव्यापी हैं, सर्वशक्तिमान हैं और सर्वग्याता हैं। तो राधा का अहंकार चूर करने के लिए भगवान उनके पास आए और कहा- राधा, चलो हम और तुम वन में सैर करें। राधा तो खुशी से झूम उठीं। भगवान का यह प्रस्ताव किसी को भी आनंद से सराबोर कर देगा। भगवान और राधा वन में चलते गए, चलते गए, चलते गए। राधा थक गईं। एक सुंदर सी जगह देख कर राधा ने कहा- भगवन, क्यों न यहीं बैठ कर बातें करें। भगवान बोले- नहीं। चलो इससे भी अच्छी जगह ढूंढ़े। वहीं बैठेंगे। फिर भगवान चलते गए, चलते गए, चलते गए। वे बातें नहीं करते थे, बस चलते जा रहे थे। राधा चलते चलते बोलीं- अब मुझसे चला नहीं जाता। भगवान ने कहा- तो तुम मेरे कंधे पर बैठ जाओ। किसी के लिए भी इससे बड़ा सम्मान और क्या हो सकता है कि भगवान खुद उसे अपने कंधे पर बिठाएं। राधा भगवान के कंधे पर बैठ कर अहंकार से और फूल गईँ। भगवान समझ गए। अचानक भगवान गायब हो गए। राधा धड़ाम से जमीन पर आ गईँ। अब उन्हें समझ में आया- भगवान उनके अहंकार के कारण ही अदृश्य हो गए। वे एकदम से रोने लगीं। धाराधार आंसू बहे जा रहे थे। वे भगवान से प्रार्थना करने लगीं- भगवन, अब मेरे मन में अहंकार का स्थान नहीं है। कृपया दर्शन दीजिए। काफी प्रार्थना के बाद भगवान कृष्ण प्रकट हुए और राधा से प्रेम से बातें की। राधा या अन्य गोपियां पू्र्व जन्म में ऋषि थीं। ऋषि के रूप में उन लोगों ने भगवान से प्रार्थना की थी कि वे लोग उनके साथ अगले जन्म में मित्र के रूप में रहना चाहते हैं। इससे लाभ यह होगा कि भगवान के साक्षात दर्शन होंगे और उनकी प्रिय बातें सुनने को मिलेंगी। साधना के उच्च स्तर पर रहने वाले इन ऋषियों की बातें भगवान कैसे नहीं मानते। सो इस जन्म में उनका जन्म गोपिकाओं के रूप में हुआ। ये गोपिकाएं जन्म से ही उच्च कोटि की अवस्था में थीं।
1 comment:
बहुत सुन्दर प्रसंग्।
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