Monday, July 5, 2010

एकांत में रहने के फायदे

विनय बिहारी सिंह

सभी साधु संतों ने महीने या दो महीने में एक बार एकांत में रहने की सलाह दी है। इससे आत्ममंथन या आत्मनिरीक्षण का मौका मिलता है। आत्ममंथन कैसे करें? एक- यह परखना चाहिए कि मेरे विचार किस तरह के हैं। मैं आजकल किन विचारों के इर्द- गिर्द घूम रहा हूं। मेरा मन कहां- कहां भटक रहा है? क्या मेरा मन ईश्वर के प्रति आकर्षित रहता है। इससे हम कहां हैं, पता चल जाता है। आत्मविश्लेषण से मनुष्य का विकास होता है। रामकृष्ण परमहंस कहते थे- मनुष्य को महीने- दो महीने में एक बार किसी एकांत जगह पर जा कर चुपचाप दो- चार दिन जरूर रहना चाहिए। अगर समय हो तो यह अवधि बढ़ा कर एक हफ्ते या दो हफ्ते तक कर देनी चाहिए। वे तो कहते थे कि मनुष्य को एकांत में ईश्वर के विरह में रोना चाहिए। ईश्वर से कहना चाहिए कि भगवन, आखिर आप कब दर्शन देंगे। आंखों में आंसू भर कर दिल से प्रार्थना करने पर ईश्वर अवश्य दर्शन देते हैं। अगर रो नहीं सकें तो कम से कम दिल से प्रार्थना तो कर ही सकते हैं। पिछले रविवार को एक भक्त कह रहे थे- अब इस दुनियादारी में मन नहीं लगता। जल्दी से अपनी जिम्मेदारियां पूरी करके अब सिर्फ भगवान के लिए ही जीने का मन करता है। तभी एक पुराने भक्त ने कहा- दिन रात भगवान को पकड़े रहिए। हर क्षण भगवान के चरणों में पड़े रहिए औऱ दुनियादारी के काम भी करते रहिए। लेकिन संसार के मोह मत पालिए। यहां न कोई आपका है न आप किसी के हैं। सब बारी- बारी से इस संसार से चले जाएंगे। सारे रिश्ते नाते अस्थाई हैं। यह दिमाग में रख कर ईश्वर के लिए सारे काम करने से जीवित रहते ही मुक्ति मिल जाती है

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