Wednesday, July 21, 2010

(courtesy- BBC HINDI SERVICE)

लाखों की जान ले लेगा एस्बेस्टस

ऐस्बेस्टस

कई देशों में त्वचा की बीमारियों के लिए इसे ज़िम्मेदार ठहराया जाता है

दुनिया भर के वैज्ञानिकों, डॉक्टरों और कार्यकर्ताओं को डर है कि अगले एक दशक में विकासशील देशों में लाखों लोग एस्बेस्टस का उपयोग करने की वजह से मारे जाएँगे.

खोजी पत्रकारों की संस्था 'इंटरनेशनल कन्सोर्टियम ऑफ़ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स' और बीबीसी ने संयुक्त रुप से की गई छानबीन में पाया है एस्बेस्टस से कैंसर होने की आशंका के बावजूद दुनिया भर में इसका बड़ी मात्रा में उत्पादन हो रहा है.

हालांकि एस्बेस्टस कनाडा सहित दुनिया के क़रीब 50 देशों में प्रतिबंधित है लेकिन इन देशों की कंपनियाँ अभी भी चीन, भारत और मैक्सिको जैसे विकासशील देशों को एस्बेस्टस का निर्यात कर रहे हैं.

इन कंपनियों का कहना है कि वे जो एस्बेस्टस निर्यात कर रहे हैं वह 'व्हाइट एस्बेस्टस' है और अपेक्षाकृत सुरक्षित है.

'व्हाइट एस्बेस्टस' का उपयोग निर्माण और अन्य उद्योगों में होता है.

छानबीन से यह भी पता चला है कि अभी भी इस कैंसरकारी तत्व के प्रचार के लिए लाखों डॉलर खर्च किए जाते हैं.

विवाद

इस बात को लेकर एक वैज्ञानिक बहस चल रही है कि क्या एस्बेस्टस का उपयोग अभी भी किया जा सकता है.

विकासशील देशों में एस्बेस्टस अभी भी अग्निरोधक छतों के निर्माण, पानी के पाइप और भवन निर्माण में कई जगह एक सस्ते और लोकप्रिय सामग्री के रुप में उपयोग में लाया जाता है.

इस खनिज बचाव करने वालों का कहना है कि इस समय सिर्फ़ व्हाइट एस्बेस्टस का उपयोग किया जाता है. उनका कहना है कि अगर व्हाइट एस्बेस्टस का सावधानीपूर्वक उपयोग किया जाए और यह बहुत अधिक मात्रा में शरीर के भीतर ना जाए तो यह हानिकारक नहीं होता.

वैज्ञानिक शोधों का हवाला देकर वे कहते हैं कि व्हाइट एस्बेस्टस वैसा हानिकारक नहीं होता जैसे कि ब्लू एस्बेस्टस और ब्राउन एस्बेस्टस होते हैं.

सांस की बीमारियों और कैंसर के सबूत मिलने के बाद ब्लू एस्बेस्टस और ब्राउन एस्बेस्टस को दुनिया भर में प्रतिबंधित कर दिया गया है.

लेकिन बहुत से कार्यकर्ता और वैज्ञानिक विश्व स्वास्थ्य संगठन का हवाला देकर एस्बेस्टस का विरोध कर रहे हैं.

उनका कहना है व्हाइट एस्बेस्टस में भी कैंसरकारी तत्व हैं और इससे फेफड़े के कैंसर के अलावा कई तरह का कैंसर हो सकता है.

उल्लेखनीय है कि व्हाइट एस्बेस्टस पर यूरोपीय संघ ने प्रतिबंध लगा रखा है लेकिन भारत, चीन और रूस में अभी भी इसका प्रयोग होता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक शीर्ष वैज्ञानिक का कहना है कि अब व्हाइट एस्बेस्टस के खनन और उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.

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