भगवान शिव ने जब भक्त को दीक्षा दी
विनय बिहारी सिंह
भगवान का एक अनन्य भक्त दिन रात प्रार्थना करता रहता था- हे भगवान दर्शन दीजिए। अब और प्रतीक्षा नहीं कर सकता। आपके दर्शन बिना एक- एक क्षण कष्टकारी लगता है। दर्शन दीजिए भगवान, कृपा करके दर्शन दीजिए। उस भक्त का दिल और दिमाग भगवान शिव की भक्ति से ओतप्रोत था। उसके बाल भगवान शिव की जटा की तरह हो गए थे। सोने से पहले वह कहता था- भगवान, अगर नींद आ जाएगी तो यह मत समझिए कि मैं आपसे दूर हूं। मेरी नींद भी आप ही हैं। इसलिए मैं आपकी गोद में ही सो रहा हूं। क्या गजब की भक्ति थी। एक बार वह केदारनाथ और बद्रीनाथ की तीर्थयात्रा पर गया। उस जमाने में साधनों की कमी थी। दुर्गम पहाड़ी रास्ता। वह चलता जा रहा था और ओम नमः शिवाय का जाप करता जा रहा था। केदारनाथ, बद्रीनाथ के दर्शन करने के बाद वह लौट रहा था। अचानक उसे एक अन्य पहाड़ी की तरफ जाने की इच्छा हुई। आगे रास्ता सुनसान था। आगे बढ़ कर उसने देखा कि एक शिला पर एक दिव्य साधु बैठे हुए हैं। जटा मोहक है। चेहरा देदीप्यमान है और वे चुपचाप बैठे हुए हैं। भक्त को न जाने क्यों इस साधु में एक आकर्षण महसूस हुआ। उसने दिव्य साधु के पैर छुए और उनके पैरों के पास बैठ गया। साधु ने उसका नाम और पता- ठिकाना पूछा। भक्त ने बताया कि वह केदारनाथ- बद्रीनाथ की यात्रा पर आया था। फिर भक्त ने साधु से पूछा- बाबा, भगवान शिव के दर्शन कैसे होंगे। क्या वे मुझ साधारण व्यक्ति को दर्शन देंगे। मुझे तो भगवान शिव के दर्शन के बिना अपना जीवन बेकार लगता है। साधु बोले- भगवान शिव का दर्शन कर क्या करोगे? वे तो हर जगह हैं। सर्वत्र व्याप्त हैं। भक्त बोला- नहीं बाबा, पता नहीं क्यों भगवान शिव के दर्शन के बिना प्राण छटपटा रहे हैं। मैं उनका भक्त हूं। अगर आप उनका दर्शन करा दें तो बड़ी कृपा होगी। साधु हंसे औऱ बोले- ऐसे तो शिव जी के दर्शन नहीं होंगे। तुम्हें किसी गुरु से दीक्षा लेनी पड़ेगी। साधना करनी पड़ेगी। यह ठीक है कि तुम्हारे अंदर गहरी श्रद्धा है। लेकिन किसी सिद्ध पुरुष से दीक्षा ले लो। फिर अवश्य शिव जी तुम्हें दर्शन देंगे। भक्त बोला- बाबा, अब गुरु कहां से ढूंढूं। आप ही मेरे गुरु बन जाइए। साधु बोले- तो ठीक है। सामने एक झरना बह रहा है। वहां नहा कर आओ। भक्त झरने के पानी में प्रेम से नहा आया। दिव्य साधु ने उसे दीक्षा दी। पूरे तीन घंटे बीत गए। फिर वे वहां से चले गए। भक्त ध्यान कर रहा था। उसे सुनाई पड़ा- तुमने साक्षात शिव जी के दर्शन कर लिए। उनसे दीक्षा भी ले ली। जब उसने आंखें खोलीं तो साधु गायब थे। भक्त ने रात उसी चट्टान पर बिताई। वह तो शिव जी में ही जीता था, सांस लेता था। अगले दिन सुबह उठ कर यह कह कर रोने लगा- भगवन, दर्शन तो दे दिया। लेकिन मैं समझ नहीं पाया कि आप ही शिव जी हैं। ठीक से प्रणाम भी नहीं कर पाया। मन- प्राण से आपको निहार भी नहीं सका। बातें भी नहीं कर सका। एक बार और दर्शन दीजिए। तभी उसने देखा उसके ठीक सामने एक स्थान पर वही साधु हवा में खड़े हैं और उसकी तरफ देख कर हाथ हिला कर उसे प्रस्थान करने के लिए कह रहे हैं। यानी बस इसी तरह दर्शन होते रहेंगे। भक्त बोला- ठीक है भगवन। आपकी लीला। आप जैसा चाहें, वैसे ही सही। लेकिन मेरे दिल से आप नहीं निकल सकते। मेरी रुद्राक्ष की माला में भी आप ही हैं। मेरे हृदय में भी आप ही हैं। मैं आपके बिना रह ही नहीं सकता।
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