मैं ही संपूर्ण संसार का मूल
कारण हूं- भगवान श्रीकृष्ण
गीता के सातवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है- मैं संपूर्ण संसार का मूल कारण हूं। क्योंकि संसार मुझसे ही उत्पन्न होता है और मुझमें ही लीन होता है। हे धनंजय (अर्जुन) मेरे सिवाय इस इस संसार का दूसरा कोई कारण नहीं है। जैसे सूत की बनाई हुई मणियां सूत के धागे में ही पिरोई जाती हैं तो उस माला में सूत ही सूत है, ऐसे ही संपूर्ण संसार में मैं ही मैं हूं। हे कुंतीनंदन, जल में मैं रस हूं, सूर्य और चंद्रमा में प्रकाश मैं हूं, संपूर्ण वेदों में प्रणव (ओंकार) मैं हूं, आकाश में शब्द मैं हूं, मनुष्यों में पुरुषार्थ मैं हूं, पृथ्वी में पवित्र गंध मैं हूं, अग्नि में तेज मैं हूं, संपूर्ण प्राणियों की जीवनी शक्ति मैं हूं और तपस्वियों का तप मैं हूं। हे पार्थ, संपूर्ण प्राणियों का अनादि बीज मुझे ही जान। बुद्धिमानों की बुद्धि और तेजस्वी पुरुषों का तेज (प्रभाव) मैं हूं। हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन , बलवानों में कामना और आसक्ति रहित (सात्विक) बल मैं हूं और तो क्या कहूं, जितने भी सात्विक, राजस और तामस भाव हैं, वे सब मुझसे ही होते हैं, ऐसा समझ। परंतु मैं उनसे सर्वथा अतीत, निर्लिप्त हूं।
No comments:
Post a Comment