मानसरोवर के पास एक दिव्य साधु से भेंट
विनय बिहारी सिंह
पुस्तक- महातीर्थ के अंतिम यात्री में एक बहुत ही रोचक प्रसंग आया है। इसमें मानसरोवर के पास एक दिव्य साधु से भेंट का प्रसंग है। इस अत्यंत ठंडी जगह पर रात बिताने के लिए जगह खोजते- खोजते लेखक विमल दे ने एक कमरे को खटखटाया। जिस साधु ने दरवाजा खोला उनका चेहरा दिव्य था। आगे वर्णन इस तरह है- कमरे के कोने में एक झोली टंगी थी जिसमें सत्तू और गेहूं रखा था। इसके अलावा अल्यूमिनियम की एक पुरानी देगची थी बाबा के पास। कैलाश से बर्फ का पिघला पानी लेकर गीउमा चु नाम की नदी मानसरोवर में आ मिली थी। उसी नदी के पानी में गेहूं उबाल कर वे एक जून भोजन करते थे। उनसे कुछ अंतरंगता बढ़ते ही मैंने पूछा- इस दारुण ठंड में आप लंगोट के सिवा कुछ नहीं पहनते, क्या यह आपकी लंबी तपस्या का फल है। वे हंस कर बोले- नहीं, यह भस्म का कमाल है। शीत से रक्षा का सबसे बड़ा हथियार है भस्म। सदाशिव चिरतुषार पर चिरकाल भस्म लगा कर ही बैठे हैं।
थोड़ा रुक कर वे फिर बोले- जीवन में सब कुछ माया है। संसार के सभी पदार्थ अग्नि से जल जाते हैं। जो बचता है वह भस्म है। भस्म ही जीवन का सार है। काम, क्रोध, लोह, मोह, मद मत्सर्य सब कुछ मन की अग्नि में जला कर राख कर दो। उसके बाद केवल भस्म बचेगा। वह भस्म जीवन का अमृत होगा। इसीलिए सदाशिव भस्म लगाए रहते हैं। वे हमसे कुछ भी नहीं चाहते। यदि हम भी वह भस्म लगा सकें तो हमें कोई पाप स्पर्श नहीं कर सकता।....... बिना कारण कुछ भी नहीं होता। हमारा जन्म, सुख- दुख, सभी के मूल में है कर्म फल। यदि तुम्हारा कोई भी संकल्प नहीं है तो तुम महात्मा हो। योगी कहते हैं कि जो बिना संकल्प के कैलाश दर्शन करते हैं उन्हें ही मुक्ति मिलती है।
इस पुस्तक को पढ़ कर आनंद आया। यह एक साधु स्नेह के कारण पढ़ने को मिली थी।
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