जब शेर रमण महर्षि को देख कर
चुपचाप वापस चला गया
विनय बिहारी सिंह
रमण महर्षि प्रेम के प्रतीक थे। उनके पास लोग मोर, गाय और अन्य पालतू जानवर छोड़ जाते थे। पहले तो वे मना करते थे कि मैं इन जानवरों को कहां रखूंगा, लेकिन लोग जब इन पालतू जानवरों को ले जाने से इंकार कर देते थे तो रमण महर्षि उन्हें प्यार से रखते थे। एक बार उनके आश्रम में रह रहे साधु जंगल में शौच करने गए। वे शौच से निवृत्त हो कर लौट ही रहे थे कि सामने एक शेर दिखा। वे तो घबरा गए। घबराहट में उन्होंने शेर की तरफ पत्थर मारा और जान लेकर भागे। अभी कुछ दूर तक वे दौड़े ही थे कि सामने से रमण महर्षि आते दिखे। उन्होंने साधु से पूछा- क्या हुआ। क्यों दौड़ रहे हैं। साधु तो बदहवास थे। वे दौड़ते हुए इतना ही बोले- शे.....र। रमण महर्षि शांत भाव से उन्हें देखते रहे। उन्होंने कहा- चलो देखता हूं कहां है यह शेर। लेकिन साधु ने उनकी बात नहीं सुनी। तब रमण महर्षि अंदर जंगल की तरफ गए। शेर ने उनकी तरफ देखा और वापस जंगल की ओर मुड़ गया। रमण महर्षि टहलने गए थे। वे आराम से टहलते रहे। सांप, बिच्छू, शेर या अन्य कोई हिंसक या विषैला जीव रमण महर्षि को नुकसान नहीं पहुंचाता था। एक सांप बहुत दिनों तक उनके पैरों पर चढ़ जाता था और फिर अपने आप उतर जाया करता था। रमण महर्षि कहते थे कि उसके चढ़ने से मेरे पैरों में गुदगुदी होती थी। लेकिन मैं कर ही क्या सकता था। वह पैर पर थोड़ा सा चढ़ता और फिर वापस मुड़ कर चला जाता था। एक दिन अचानक उसने आना बंद कर दिया।
रमण महर्षि कहते थे- हर प्राणी भगवान का ही अंश है। अगर तुम्हारे मन उसके प्रति प्रेम है तो वह तुम्हें हानि पहुंचा ही नहीं सकता। हां, अगर प्रारब्ध कुछ और है तो वह काट सकता है। लेकिन मन में भय क्यों? गीता में भगवान कृष्ण ने भी कहा है- राग, द्वेष और भय से छुटकारा मिल जाए तो मुक्ति का रास्ता प्रारंभ हो जाता है।
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