Friday, July 23, 2010

हां, उन्होंने भगवान को देखा है


विनय बिहारी सिंह


कुछ लोग प्रश्न पूछते हैं कि क्या सचमुच साधु- संतों ने भगवान को देखा है? इसका उत्तर है- हां। साधारण बुद्धि कहती है कि हम किसी मनुष्य का स्थूल शरीर देखते हैं लेकिन वह क्या सोच रहा है, इसे हम नहीं जानते। चूंकि हमारी इंद्रिय आंख उसे उसका ठोस शरीर में देख रही है इसलिए हम जानते हैं कि वह मोटा, पतला, लंबा, ठिगना, सामान्य, सुंदर, असुंदर, सामान्य या सामान्य कद- काठी का है। हालांकि सुंदर और असुंदर की जो धारणा है वह सूक्ष्म स्तर पर खत्म हो जाती है। जो भीतर से सुंदर और स्वस्थ है यानी मन और बुद्धि से जो सुंदर है वही सुंदर कहलाने का अधिकारी है। तो किसी का शरीर हम देख सकते हैं लेकिन वह क्या सोच रहा है, यह हम नहीं जान सकते। क्योंकि उसका सोचना सूक्ष्म है। सूक्ष्म चीजें हमें दिखाई नहीं देतीं, लेकिन उनका अस्तित्व होता है। यह प्रमाणित हो चुका है। फूल हमें दिखाई देता है लेकिन उसकी गंध दिखाई नहीं देती। हालांकि गंध फिर भी हमारी इंद्रिय नाक सूंघ कर महसूस कर सकती है। लेकिन आपके भीतर किस तरह के विचार चल रहे हैं, इसे सामान्य व्यक्ति नहीं जान सकता। लेकिन यह सच है कि आपके भीतर विचार चल रहे हैं। उन विचारों के फलस्वरूप आप काम करते हैं जिनका परिणाम दिखाई देता है। जैसे आप घर बनाने के बारे में सोच रहे हैं। घर की डिजाइन के बारे में सोच रहे हैं। तो फिर वह सोच तभी दिखेगी जब आप घर बना कर तैयार करेंगे। घर बन कर तैयार हुआ और लोग आपकी तारीफ करते हैं कि वाह, क्या घर है। छोटा है लेकिन कितना सुंदर? लेकिन कई सोच स्थूल रूप में प्रकट नहीं होती। कई लोग तो अपने विचार छुपाने में माहिर होते हैं। ऊपर से हंसते रहते हैं और जिस व्यक्ति से हंस- हंस कर बातें करते हैं उसे भीतर से कोसते रहते हैं। विषयांतर न हो इसलिए आइए ईश्वर को देखने की बात पर वापस आएं। ईश्वर ने ही यह संसार बनाया है। वही इसे चला रहे हैं। वे इतने सूक्ष्म हैं कि इंद्रिय, मन या बुद्धि उसे देख नहीं सकती। हर चीज का एक नियम है। ईश्वर को भी देखने का एक नियम है। वे इतने सहज नहीं हैं और बहुत सहज भी हैं। बस जरूरत है गहरे ध्यान की। सिद्ध महात्मा या साधु गहरे ध्यान में उतरते हैं और ईश्वर को अपनी आत्मा से पुकारते हैं। चूंकि उन लोगों की कोई इच्छा नहीं है सिवाय ईश्वर से मिलने के। उनका अंतःकरण शुद्ध है। इसलिए ईश्वर सूक्ष्म होते हुए भी भक्त के लिए स्थूल रूप में प्रकट होते हैं।
एक भजन है न- प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर, प्रभु को नियम बदलते देखा।।
यह प्रबल प्रेम ही ईश्वर तक पहुंचने और उन्हें देखने का एकमात्र सूत्र है। जब तक उनके लिए दिन रात की तड़प नहीं होगी, उन्हें देखना मुश्किल ही नहीं असंभव है

2 comments:

K.P.Chauhan said...

aadarneey vinay bihaari singh ji,
jo ishwar kan kan me vyaapt hai to use dekhne ki kyaa jaroorat hai wo to aap jis cheej ,vastu ,dhool ,kankad ,makaan ,fal ,pushp jisko bhi dekh lo bas wo hi bhagwaan hai ,isko to koi bhi dekh saktaa hai fir saadhu sant hi kyon,koi bhi dekhtaa hai balki main to kahungaa ki ishwar to hamaare saath hi rahtaa hai ,ye to us waali baat ho gai ki ' bagal me bachchaa or shahar me dhindoraa'

K.P.Chauhan said...

aadarneey vinay bihaari singh ji,
jo ishwar kan kan me vyaapt hai to use dekhne ki kyaa jaroorat hai wo to aap jis cheej ,vastu ,dhool ,kankad ,makaan ,fal ,pushp jisko bhi dekh lo bas wo hi bhagwaan hai ,isko to koi bhi dekh saktaa hai fir saadhu sant hi kyon,koi bhi dekhtaa hai balki main to kahungaa ki ishwar to hamaare saath hi rahtaa hai ,ye to us waali baat ho gai ki ' bagal me bachchaa or shahar me dhindoraa'