चैतन्य महाप्रभु ने अपनी पत्नी
को स्पर्श से ही ठीक कर दिया
विनय बिहारी सिंह
चैतन्य महाप्रभु कृष्ण प्रेम में आनंदित थे। वैराग्य के वे उदाहरण माने जाते हैं। उनकी पत्नी थी विष्णुप्रिया। सन्यास के पहले वे मां से अनुमति लेना चाहते थे। मां पहले तो तैयार नहीं हुईं। उन्होंने चैतन्य महाप्रभु की शादी कर दी। तो भी चैतन्य महाप्रभु को कोई फर्क नहीं पड़ा। वे सबमें कृष्ण को ही देखते थे। ईश्वर उन्हें इस तरह आकर्षित करते थे कि रात में उठ कर वे हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे गाने लगते थे। मां ने जब देखा कि चैतन्य महाप्रभु पूरी तरह ईश्वर प्रेम में लीन हैं और उन्हें संसार में वापस लाना असंभव है तो उन्होंने उन्हें संन्यास की अनुमति दे दी। यह उन दिनों की बात है जब चैतन्य महाप्रभु नाम मात्र का गृहस्थ जीवन जी रहे थे। उनकी पत्नी मैके से घर आई और अपनी सास को प्रणाम कर ज्योंही अपने कमरे में जाने लगी उन्हें चौखट में ठेस लग गई। पैर के अंगूठे से खून बहने लगा। चैतन्य महाप्रभु के भीतर ईश्वर का करेंट हर वक्त दौड़ता रहता था। वे वहीं खड़े थे। वे अचानक झुके और पत्नी के पैर के अंगूठे से खून साफ किया और अपने हाथ के अंगूठे से दबा दिया। दो मिनट बाद जब वे उठे तो सबने देखा उनकी पत्नी के पैर में चोट का कहीं नामो निशान नहीं है। वहां खड़ी मुहल्ले की महिलाएं चकित थीं। उस सबने एक बार फिर देखा कि चैतन्य महाप्रभु साधारण व्यक्ति नहीं है। हालांकि चैतन्य महाप्रभु चमत्कारों के प्रदर्शन में विश्वास नहीं करते थे। उन्होंने करुणावश अपनी पत्नी को स्वस्थ किया। उस समय उनके दिमाग में यह बात बिल्कुल ही नहीं थी कि कोई चमत्कार हो रहा है। महान लोग चमत्कार करते नहीं उनसे अनजाने में चमत्कार हो जाते हैं।
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हिंदी ब्लॉग लेखकों के लिए खुशखबरी -
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