Wednesday, July 14, 2010

हनुमान जी को सीता जी ने
क्यों नहीं पहचाना ?

विनय बिहारी सिंह

एक व्यक्ति ने प्रश्न पूछा- सीता जी तो जगन्माता हैं। जब हनुमान जी अशोक वाटिका में सीता जी के सामने प्रकट हुए तो सीता जी ने पूछा- आप कौन हैं? जगन्माता ने हनुमान जी जैसे भक्त को कैसे नहीं पहचाना? इसके जवाब में एक संत ने कहा- आप भूल गए हैं कि सीता जी ने ही हनुमान जी को आठ सिद्धियों और नौ निधियों का वरदान दिया था। वे सब जानती थीं। लेकिन उन्हें मनुष्य लीला करनी थी। भगवान राम भी मनुष्य लीला ही कर रहे थे। अन्यथा जब राम जी वन में व्याकुल हो कर हा सीते, हा सीते कह रहे थे तो पार्वती जी ने उनकी परीक्षा ली और उनके सामने सीता जी के रूप में खड़ी हो गईं। हू ब हू सीता जी के रूप में माता पार्वती जी को देख कर भी राम उन्हें पहचान गए और कहा- माता पार्वती, आप यहां अकेले क्यों हैं? माता पार्वती सकुचा गईँ। वे समझ गईं, भगवान राम मनुष्य लीला कर रहे हैं। इसी तरह सीता जी ने हनुमान जी को पहचान लिया था। वे जानती थीं कि हनुमान जी उनके पति के अनन्य भक्त हैं। फिर भी उन्होंने न पहचानने का अभिनय किया। गीता में भी भगवान कृष्ण ने कहा है- मुझे न किसी वस्तु की जरूरत है और न ही कोई कर्तव्य करने की आवश्यकता, फिर भी मैं कर्तव्य करता रहता हूं क्योंकि कर्तव्य न करूं तो बड़ी हानि हो जाएगी। मनुष्य मेरा ही अनुसरण करते हैं। इसलिए मैं अपने कर्तव्य करता हूं। भगवान को सचमुच चाहिए ही क्या? वे तो सबके दाता हैं। कहा ही गया है कि सबके दाता राम। उन्हें बस हमारा प्यार भर चाहिए। तुलसीदास ने लिखा है- जो व्यक्ति एक बार संपूर्ण समर्पण और भक्ति से राम कह देता है वह तत्क्षण ईश्वर की कृपा का भागी बन जाता है। उसके जीवन की बाधाएं नष्ट हो जाती हैं।

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